शत्रु राशि में ग्रहों का प्रभाव

शत्रु क्षेत्रगत ग्रहों का फल

शत्रु क्षेत्रगत ग्रहों का सामान्य फल नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

  • जिस जातक की जन्म कुंडली में सूर्य अपने शत्रु (शुक्र अथवा शनि) की राशि (वृष, तुला, मकर अथवा कुम्भ) में बैठा हो, वह नौकरी करने वाला तथा सर्वदा दुखी रहने वाला होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार सूर्य को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में चन्द्रमा अपने शत्रु (राहु अथवा केतु ) की राशि (कन्या अथवा मिथुन ) में बैठा हो, वह अपनी माता के कारण दुखी रहता है तथा ह्रदय रोगी होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार चन्द्रमा को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में मंगल अपने शत्रु (बुध ) की राशि (कन्या अथवा मिथुन ) में बैठा हो, वह दीन, मलीन, विकलांग तथा व्याकुल रहने वाला होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार मंगल को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में बुध अपने शत्रु (चन्द्रमा ) की राशि (कर्क)  में बैठा हो, वह कर्तव्यहीन, वासनायुक्त तथा सामान्य सुख प्राप्त करने वाला होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार बुध को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में गुरु अपने शत्रु (शुक्र अथवा बुध ) की राशि (वृष, तुला, कन्या अथवा मिथुन )  में बैठा हो, वह चतुर तथा भाग्यशाली होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार गुरु को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में शुक्र अपने शत्रु (सूर्य अथवा चन्द्रमा ) की राशि (सिंह अथवा कर्क)  में बैठा हो, वह नौकरी अथवा दास वृत्ति करके अपनी जीविका चलाता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार शुक्र को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में शनि अपने शत्रु (सूर्य , चंद्र अथवा मंगल ) की राशि (सिंह, कर्क, मेष अथवा वृश्चिक ) में बैठा हो, वह जीवन भर किसी न किसी कारणवश दुखी तथा चिंतित बना रहता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार शनि को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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आवशयक टिप्पणी

(1 ) शत्रु – क्षेत्री राहु तथा केतु का प्रभाव भी शत्रु – क्षेत्री शनि के समान होता है।

(2 ) जिस जातक की जन्म कुंडली में जितने अधिक ग्रह शत्रु- क्षेत्री होते हैं, वह उतना ही अधिक दुखी, चिंतित, निराश, दरिद्र तथा भाग्यहीन होता है। यदि तीन ग्रह शत्रु – क्षेत्री हों तो जीवन – भर दुखी रहता है, परंतु जीवन के अंतिम भाग में सुख प्राप्त करता है।

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