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ग्रहों के क्षेत्रगत प्रभाव: विविध दृष्टिकोण

मित्र क्षेत्रगत ग्रहों का सामान्य फल

मित्र क्षेत्रगत ग्रहों का सामान्य फल नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

  • जिस जातक की जन्म कुंडली में सूर्य अपने मित्र (चंद्र, मंगल अथवा गुरु) की राशि (कर्क, मेष, वृश्चिक, धनु अथवा मीन) में बैठा हो, तो वह दानी, यशस्वी, व्यवहारकुशल तथा सौभाग्यशाली होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार सूर्य को मित्र – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में चंद्र अपने  मित्र (सूर्य अथवा बुध ) की राशि (सिंह , कन्या ,अथवा मिथुन ) में बैठा हो, वह गुणवान, धनवान, तथा सुखी होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार चन्द्रमा को मित्र – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में मंगल अपने  मित्र (सूर्य, चंद्र अथवा गुरु ) की राशि (सिंह , कर्क, धनु अथवा मीन )  में बैठा हो, वह धनवान तथा मित्र – प्रेमी होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार मंगल को मित्र – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में बुध अपने  मित्र (सूर्य अथवा शुक्र ) की राशि (सिंह , वृष अथवा तुला )  में बैठा हो, वह कार्यदक्ष, शास्त्रज्ञ तथा विनोदी स्वभाव का होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार बुध को मित्र – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में गुरु अपने  मित्र (सूर्य, चंद्र अथवा मंगल ) की राशि (सिंह , कर्क, मेष अथवा वृश्चिक )  में बैठा हो, वह बुद्धिमान, सुखी तथा उन्नतिशील होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार गुरु को मित्र – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में शुक्र अपने  मित्र (बुध अथवा शनि ) की राशि (कन्या ,मिथुन , मकर अथवा कुम्भ )  में बैठा हो, वह सुखी, गुणवान एवं संततिवान होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार शुक्र को मित्र – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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  • जिस जातक की जन्म कुंडली में शनि अपने  मित्र (बुध अथवा शुक्र ) की राशि (कन्या ,मिथुन , वृष अथवा तुला )  में बैठा हो, वह प्रेमी- स्वभाव का, धनी, सुखी तथा परान्न – भोजी होता है।

उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार शनि को मित्र – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।

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आवशयक टिपण्णी –

(1 ) मित्र – क्षेत्री राहु तथा केतु का फल मित्र – क्षेत्री शनि के समान होता है।

(2 ) जिस जातक की जन्म कुंडली में एक ग्रह मित्र – क्षेत्री हो, वह पराये धन का उपयोग करता है। यदि दो ग्रह मित्र- क्षेत्री हों तो जातक मित्र के धन का उपभोग करता है।  यदि तीन ग्रह मित्र – क्षेत्री हों तो स्व – उपार्जित धन का उपयोग करता है। यदि चार ग्रह मित्र – क्षेत्री हों तो दानी होता है। यदि पांच ग्रह मित्र – क्षेत्री हों तो नेता, सरदार अथवा सेनापति होता है।  यदि छः ग्रह मित्र – क्षेत्री हों तो राजमान्य, उच्च पदाधिकारी, प्रथम श्रेणी का नेता अथवा महान सेनानायक होता है।  यदि सात ग्रह मित्र – क्षेत्री हों तो जातक राजा अथवा राजा के समान अधिकार प्राप्त करने वाला होता है। 

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