वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाला जातक शूरवीर, अत्यंत विचारशील, निर्दोष, विद्या के आधिक्य से युक्त, क्रोधी, राजाओं से पूजित, गुणवान, शास्त्रज्ञ, शत्रुनाशक, कपटी, पाखंडी, मिद्यावादी, तमोगुणी, दूसरों के मन की बात जाने वाला, पर निंदक, कटु स्वाभाव वाला तथा सेवा कर्म करने वाला होता है | उसका शरीर ठिगना तथा स्थूल होता है, आँखें गोल होती हैं | छाती चौड़ी होती है | वह भाइयों से द्रोह करने वाला, दयाहीन, ज्योतिषी तथा भिक्षावृत्ति करने वाला होता है | वह अपने जीवन की प्रथमावस्था में दुखी रहता है तथा मध्यावस्था में सुख पाता है | उसका भाग्योदय २० अथवा २४ वर्ष की आयु में होता है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पहले केंद्र एवं शरीर स्थान में अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक के शरीर पर कई बार चोट लगती है तथा शारीरिक सौंदर्य में कमी बनी रहती है | ऐसे व्यक्ति का स्वभाव उग्र होता है | वह शरीर से कठिन परिश्रम करने वाला, परन्तु दिमाग का कमजोर होता है | उसे चेचक आदि की बिमारी भी हो सकती है, जिसके स्थायी चिन्ह शरीर पर बने रहेंगे | ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक कुछ अधिक दौड़ धूप करने पर अधिक थक जाता है तथा परेशानी का अनुभव करता है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दूसरे धन एवं कुटुंब के भवन में अपने शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित उच्च के केतु के प्रभाव से जातक को धन की प्राप्ति के लिए विशेष परिश्रम करना पड़ता है, परन्तु कभी कभी उसे आकस्मिक रूप से भी धन का लाभ हो जाता है | ऐसा व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा को बचाए रखने के लिए विशेष प्रत्यनशील रहता है और उसके कौटुम्बिक सुख में भी कुछ न कुछ बनी रहती है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
तीसरे भाई बहन एवं पराक्रम के स्थान में अपने मित्र शनि की मकर राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक के पराक्रम में अत्यधिक वृद्धि होती है | ऐसा व्यक्ति बड़ा परिश्रमी, साहसी तथा धैर्यवान होता है | भीतर से कमजोरी का अनुभव करने पर भी वह बाहर से बड़ी हिम्मत का प्रदर्शन करता है | उसे झगडे – झंझट के मामलों में सफलता प्राप्त होती है, परन्तु भाई बहन के संबंधो से उसे सदैव ही परेशानी एवं कष्ट का सामना करना पड़ता है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
चौथे केंद्र, माता एवं भूमि के भवन में अपने मित्र शनि की कुम्भ राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को माता के कारण परेशानी उठानी पड़ती है तथा भूमि एवं मकान आदि के सुख में भी कमी बनी रहती है | ऐसे व्यक्ति का ह्रदय सदैव अशांत रहता है | वह कठिन परिश्रम करके सुख चैन पाना चाहता है, परन्तु उसे मनचाही सफलता नहीं मिलती | स्थान परिवर्तन कर देने पर उसे थोड़ा बहुत सुख मिल जाता है, परन्तु घर में सदैव अशांति ही बनी रहती है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पांचवें त्रिकोण, विद्या तथा संतान के भवन में अपने शत्रु गुरु के मीन राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को विद्याध्ययन में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा संतान के पक्ष से भी कष्ट प्राप्त होता है | ऐसा व्यक्ति बड़ा जिद्दी, दृढ- निश्चयी, गुप्त युक्तियों सेकाम लेने वाला, साहसी, निर्भय तथा धैर्यवान होता है | उसके मस्तिष्क में गुप्त चिंताओं का निवास रहता है, परन्तु वह उन्हें किसी पर प्रकट नहीं होने देता | उसका बातचीत करने का ढंग भी अच्छा नहीं होता |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
छठे शत्रु एवं रोग भवन में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक शत्रु पक्ष पर अपना विशेष प्रभाव रखता है तथा सभी मुसीबतों , संकटों ,कठिनाइयों, झगड़ों एवं शत्रुओं पर अपने साहस, धैर्य, गुप्त युक्तियों एवं बहादुरी के बल पर विजय प्राप्त करता है | वह बड़ा परिश्रमी होता है तथा अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए प्रयत्नशील बना रहता है | उसके ननिहाल का पक्ष भी कमजोर रहता है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने मित्र शुक्र की वृषभ राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को स्त्री पक्ष से घोर कष्टों का सामना करना पड़ता है तथा ग्रेह्स्थी के सुख में अनेक प्रकार के व्यवधान एवं संकट उठ खड़े होते हैं | उसे अपने दैनिक व्यापार के क्षेत्र में भी कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं तथा जनेन्द्रिय में विकार भी होता है | ऐसा व्यक्ति अपने चातुर्य, हठ, गुप्त युक्ति, साहस एवं धैर्य के बल पर किसी प्रकार कठिनाइयों का निवारण करने में कुछ समर्थ होता है, परन्तु उसका जीवन संघर्षमय ही बना रहता है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
आठवें आयु एवं पुरातत्व के भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित नीच के केतु के प्रभाव से जातक को अपनी आयु (जीवन) के सम्बन्ध में अनेक बार मृत्यु तुले कष्टों का सामना करना पड़ता है तथा पुरातत्व की भी हानि होती है | ऐसा व्यक्ति अपने जीवन का निर्वाह करने के लिए कठिन परिश्रम करता है तथा गुप्त युक्तियों का आश्रय भी लेता है, फिर भी वह संकटों से छुटकारा नहीं पाता |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
नवें त्रिकोण, भाग्य एवं धर्म के स्थान में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक की भाग्योन्नति में महान संकट उपस्थित होते रहते हैं तथा धर्म की भी हानि होती है | ऐसा व्यक्ति हर समय मानसिक चिंताओं से घिरा रहता है | वह कभी कभी घोर संकटों का सामना भी करता है | गुप्त युक्तियों एवं कठिन परिश्रम के द्वारा वह अपने भाग्य को बनाने का प्रयत्न करता है , परन्तु उसे अधिक सफलता नहीं मिल पाती |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दसवें केंद्र, पिता, राज्य एवं व्यवसाय के भवन में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को पिता द्वारा कष्ट प्राप्त होता है, राज्य के क्षेत्र से मान भंग होता है तथा परेशानियां उठानी पड़ती हैं एवं व्यवसाय की उन्नति में घोर संकटों का सामना करना पड़ता है | ऐसा व्यक्ति किसी किसी समय घोर संकट में भी फंस जाता है, परन्तु वह अपने धैर्य, साहस एवं गुप्त युक्तियों के बल पर अंततः कुछ राहत पा लेता है | फिर भी उसका जीवन सुखी नहीं रहता |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
ग्यारहवें लाभ भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को आमदनी के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त होती है |कभी कभी उसे आकस्मिक धन का लाभ भी हो जाता है और कभी कभी संकटों का सामना भी करना पड़ता है | ऐसा जातक स्वार्थी तथा चालबाज होता है | वह सदैव अपना मतलब पूरा करने की इच्छा रखता है | इतने पर भी उसे अपने लाभ से संतोष नहीं होता | वह परिश्रम एवं हिम्मत के साथ और अधिक आमदनी बढ़ाने का प्रयत्न करता रहता है |
जिस जातक का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
बारहवें व्यय स्थान में अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक रहता है, परन्तु वह बड़ी चतुराई, परिश्रम एवं गुप्त युक्तियों के बल पर अपने खर्च को चलाता रहता है | ऐसे व्यक्ति को बाहरी स्थानों के संबंध से कठिन परिश्रम एवं चतुराई द्वारा लाभ प्राप्त होता है | किसी समय उसे अपने खर्च के कारण घोर संकट का सामना भी करना पड़ता है, फिर भी वह अपने साहस तथा धैर्य को नहीं छोड़ता |
Vrishchik Lagan Mein Graho ka Phaladesh वृश्चिक लग्न का संक्षिप्त फलादेश वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाला जातक शूरवीर, अत्यंत विचारशील, निर्दोष, विद्या के आधिक्य से युक्त, क्रोधी, राजाओं से पूजित, गुणवान, शास्त्रज्ञ, शत्रुनाशक, कपटी, पाखंडी, मिद्यावादी, तमोगुणी, दूसरों के मन की बात जाने वाला, पर निंदक, कटु स्वाभाव वाला…
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