शत्रु क्षेत्रगत ग्रहों का फल
शत्रु क्षेत्रगत ग्रहों का सामान्य फल नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार सूर्य को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।
उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार चन्द्रमा को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।
उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार मंगल को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।
उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार बुध को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।
उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार गुरु को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।
उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार शुक्र को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।
उदहारण – कुंडली में जिस प्रकार शनि को शत्रु – क्षेत्री दिखाया गया है, उसी प्रकार अन्य कुंडलियों में भी समझ लेना चाहिए।
आवशयक टिप्पणी –
(1 ) शत्रु – क्षेत्री राहु तथा केतु का प्रभाव भी शत्रु – क्षेत्री शनि के समान होता है।
(2 ) जिस जातक की जन्म कुंडली में जितने अधिक ग्रह शत्रु- क्षेत्री होते हैं, वह उतना ही अधिक दुखी, चिंतित, निराश, दरिद्र तथा भाग्यहीन होता है। यदि तीन ग्रह शत्रु – क्षेत्री हों तो जीवन – भर दुखी रहता है, परंतु जीवन के अंतिम भाग में सुख प्राप्त करता है।
विंशोत्तरी महादशा के ग्रहों का फलादेश सूर्य की महादशा में जातक का चित्त उद्विग्न बना…
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