मीन लग्न में शनि का फल

मीन लग्न का संक्षिप्त फलादेश

मीन लग्न में जन्म लेने वाला व्यक्ति जल क्रीड़ा करने में कुशल, विनम्र, सुरतिवान, स्त्री- प्रिय, प्रचंड, श्रेष्ठ पंडित, चतुर अल्पभोजी, चंचल, धूर्त , श्रेष्ठ रत्नाभूषणों को धारण करने वाला, अनेक प्रकार की रचनाएं करने वाला, पित्त प्रकृति वाला, यशस्वी, सतोगुणी, आलसी, रोगी, अधिक संततिवान, बड़ी आँखों वाला तथा अकस्मात हानि उठाने वाला होता है | उसका शरीर सामान्य कद का होता है , ठोढ़ी, में गड्ढा होता है तथा मस्तिष्क बड़ा होता है | ऐसा व्यक्ति अपनी प्रारंभिक अवस्था में सामान्य जीवन व्यतीत करता है, मध्यमावस्था में दुखी रहता है तथा अंतिम अवस्था में सुख भोगता है | उसके भाग्य की वृद्धि अथवा २२ वर्ष की आयु में होती है |

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र एवं शरीर स्थान में अपने शत्रु गुरु की मीन राशि पर स्थित व्ययेश शनि के प्रभाव से जातक के शारीरिक सौंदर्य एवं स्वास्थय में कमी आती है, परंतु बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ होता है।  यहाँ से शनि अपनी तीसरी मित्रदृष्टि से तृतीयभाव को देखता है, अतः भाई बहनो के सुख तथा पराक्रम में उतार चढ़ाव आता रहता है। सातवीं मित्रदृष्टि से सप्तमभाव को देखने से स्त्री पक्ष से सुख दुःख तथा व्यवसाय पक्ष से हानि लाभ की प्राप्ति होती रहती है। दसवीं शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखने के कारण पिता से वैमनस्य रहता है, राज्य से परेशानी मिलती है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में संघर्ष का सामना करना पड़ता है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन एवं कुटुंब के भवन में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि पर स्थित व्ययेश तथा नीच के शनि के प्रभाव से जातक के धन संचय में कठिनाइयां आती हैं तथा हानि भी उठानी पड़ती है। साथ ही उसे कुटुंब का सुख भी थोड़ा ही मिल पाता है। बाहरी स्थानों के संबंध हानिकारक सिद्ध होते हैं। यहाँ से शनि अपनी तीसरी मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखता है, अतः माता, भूमि एवं मकान आदि के सुख में उतार- चढ़ाव आते रहते हैं। सातवीं उच्च तथा मित्रदृष्टि से अष्टमभाव को देखने से आयु तथा पुरातत्व की शक्ति प्राप्त होती है तथा दसवीं दृष्टि से अपनी ही राशि में एकादशभाव को देखने के कारण आमदनी खूब रहती है, परंतु धन का संचय नहीं हो पाता।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे भाई बहन एवं पराक्रम के भवन में अपने मित्र शुक्र की वृषभ राशि पर स्थित व्ययेश शनि के प्रभाव से जातक को भाई बहनो के द्वारा सुख दुःख दोनों की ही प्राप्ति होती है तथा पराक्रम की वृद्धि होती है। वह बड़ा पुरुषार्थी, हिम्मत वाला तथा परिश्रमी होता है। यहाँ से शनि तीसरी शत्रुदृष्टि से पंचमभाव को देखता है, अतः संतानपक्ष से कठिनाई रहती है तथा विद्या- बुद्धि के क्षेत्र में भी कमी बनी रहती है। सातवीं मित्रदृष्टि से नवमभाव को देखने से भाग्योन्नति में कुछ कमी रहती है तथा दसवीं दृष्टि से अपनी ही राशि में द्वादशभाव को देखने के कारण खर्च अधिक रहता है, परंतु बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ भी प्राप्त होता है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र, माता एवं भूमि के भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक को माता, भूमि एवं मकान आदि के सुख में हानि लाभ युक्त शक्ति प्राप्त होती है। घरेलू सुख में भी कमी रहती है। यहाँ से शनि अपनी तीसरी शत्रुदृष्टि से षष्ठभाव को देखता है। अतः शत्रु पक्ष से परेशानी रहती है तथा झगडे के मामलों में कभी हानि उठानी पड़ती है और कभी लाभ भी होता है। सातवीं शत्रुदृष्टि से दशमभाव को देखने से पिता, राज्य तथा व्यवसाय के क्षेत्र में कुछ कठिनाइयां आती रहती हैं तथा दसवीं शत्रुदृष्टि से प्रथमभाव को देखने के कारण शारीरिक सौंदर्य एवं स्वास्थय में कमी आती है, परंतु बाहरी स्थानों से लाभ तथा सुख मिलता है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण, विद्या एवं संतान के भवन में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक को संतानपक्ष से हानि लाभ दोनों ही प्राप्त होते हैं तथा विद्या बुद्धि के क्षेत्र में भी कुछ कठिनाइयों के साथ उन्नति होती है। बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ अच्छा रहता है, तथा बुद्धि बल से खर्च चलाने की शक्ति भी मिलती है। यहाँ से शनि तीसरी मित्रदृष्टि से सप्तमभाव को देखता है। अतः स्त्री पक्ष से सुख दुःख तथा व्यवसाय से हानि लाभ दोनों का मिश्रित योग प्राप्त होता है। सातवीं दृष्टि से अपनी ही राशि में एकादशभाव को देखने से बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ होता रहता है। दसवीं नीच दृष्टि से शत्रु की राशि में तृतीयभाव को देखने के कारण धन संचय की शक्ति में तो वृद्धि होती है, परंतु कुटुंब द्वारा क्लेश प्राप्त होता है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे रोग एवं शत्रु भवन में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक शत्रु पक्ष पर अत्यधिक प्रभाव रखता है तथा झगडे झंझट के मामलों में खर्च खर्च करके लाभ प्राप्त करता है। उसे बिमारी आदि में भी खर्च करना पड़ता है। यहाँ से शनि अपनी तीसरी उच्च दृष्टि से मित्र की राशि में अष्टमभाव को देखता है, अतः जातक की आयु तथा पुरातत्व शक्ति की वृद्धि होती है। सातवीं दृष्टि से अपनी ही राशि में द्वादशभाव को देखने से खर्च अधिक रहता है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ होता है। दसवीं मित्रदृष्टि से तृतीयभाव को देखने के कारण भाई बहन के सुख में कुछ कमी रहती है, परंतु पराक्रम की वृद्धि होती है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित व्ययेश तथा लाभेश शनि के प्रभाव से जातक को स्त्री तथा व्यवसाय के पक्ष में सुख दुःख एवं हानि लाभ दोनों की ही प्राप्ति होती है। खर्च अधिक रहने से परेशानी होती है, परंतु बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ होता है। यहाँ से शनि अपनी तीसरी शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखता है, अतः भाग्योन्नति एवं धर्मोन्नति में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। सातवीं शत्रुदृष्टि से प्रथमभाव को देखने से जातक के शरीर में कुछ कमजोरी रहती है तथा दसवीं मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखने के कारण माता के सुख में हानि लाभ दोनों का ही योग रहता है तथा भूमि एवं मकान आदि का सुख भी कुछ कमी के साथ प्राप्त होता है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें आयु एवं पुरातत्व के भवन में अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर स्थित उच्च के शनि के प्रभाव से जातक की आयु में वृद्धि होती है तथा पुरातत्व का लाभ होता है। बाहरी स्थानों के संबंध से विशेष आमदनी होती है, परंतु उसके लिए दौड़ धुप अधिक करनी पड़ती है। यहाँ से शनि तीसरी शत्रुदृष्टि से दशमभाव को देखता है, अतः पिता पक्ष से असंतोष, राज्य पक्ष से सामान्य संपर्क तथा व्यवसाय पक्ष से सामान्य लाभ होता है। सातवीं नीचदृश्टि से शत्रु की राशि में द्वितीयभाव को देखने से धन संचय का अभाव रहता है तथा कुटुंब से परेशानी प्राप्त होती है। दसवीं शत्रुदृष्टि से पंचमभाव को देखने के कारण संतानपक्ष में हानि तथा विद्या बुद्धि के क्षेत्र में कमी रहती है। ऐसे व्यक्ति के मस्तिष्क में चिंताएं घर किए रहती हैं।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण, भाग्य एवं धर्म के भवन में अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक बाहरी स्थानों के संबंध से अपने भाग्य की उन्नति तो करता है, परंतु उससे कुछ कठिनाइयां भी आती रहती हैं। इसी प्रकार धर्म पालन में भी कमी रहती है। यहाँ से शनि तीसरी दृष्टि से अपनी ही राशि में एकादशभाव को देखता है, अतः जातक की आमदनी अच्छी रहती है। सातवीं मित्रदृष्टि से तृतीयभाव को देखने से पराक्रम तथा भाई बहनो के सुख में कुछ कमी रहती है एवं दसवीं शत्रुदृष्टि से षष्ठभाव को देखने के कारण शत्रु पक्ष पर प्रभाव बना रहता है तथा झगडे झंझट के मामलों में लाभ एवं सफलता की प्राप्ति होती है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र, राज्य, पिता एवं व्यवसाय के भवन में अपने शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित व्ययेश शनि के प्रभाव से जातक को पिता के सुख में हानि, वयवसाय के क्षेत्र में कठिनाई एवं राज्य के पक्ष में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है , परंतु उसकी आमदनी अच्छी रहती है। यहाँ से शनि तीसरी दृष्टि से अपनी ही राशि में द्वादशभाव को देखता है, अतः खर्च शानदार रहता है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ भी होता है। सातवीं मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखने से माता, भूमि तथा मकान आदि का सुख कुछ कमी के साथ प्राप्त होता है। दसवीं मित्रदृष्टि से सप्तमभाव को देखने के कारण स्त्री पक्ष से कुछ परेशानी रहती है तथा स्थानीय व्यवसाय में हानि लाभ दोनों का ही योग बना रहता है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें लाभ भवन में अपनी ही मकर राशि पर स्थित स्वक्षेत्री शनि के प्रभाव से जातक की आमदनी अच्छी रहती है और वह बाहरी स्थानों के संबंध से खूब धन पैदा करता है। खर्च भी शानदार रेहता है , परंतु आमदनी बढ़ाने के लिए उसे कुछ कठिनाइयां भी उठानी पड़ती हैं। यहाँ से शनि अपनी तीसरी शत्रुदृष्टि से प्रथमभाव को देखता है, अतः जातक के शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी रहती है तथा धन कमाने के लिए बहुत दौड़ धुप करनी पड़ती है। सातवीं शत्रुदृष्टि से पंचमभाव को देखने से संतानपक्ष की कुछ हानि होती है तथा विद्या के क्षेत्र में भी कुछ कमी बनी रहती है। दसवीं शत्रुदृष्टि से अष्टमभाव को देखने के कारण जातक की आयु में वृद्धि होती है तथा पुरातत्व की शक्ति भी मिलती है। ऐसे व्यक्ति की वाणी में कुछ रूखापन रहता है और वह अधिक स्वार्थी भी होता है।

जिस जातक का जन्म मीन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्यय स्थान में अपनी ही कुम्भ राशि पर स्थित स्वक्षेत्री शनि के प्रभाव से जातक का खर्च खूब रहता है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से उस खर्च को चलाने की शक्ति प्राप्त होती है। यहाँ से शनि अपनी तीसरी नीचदृश्टि से द्वितीयभाव को शत्रु की राशि में देखता है, अतः धन तथा कुटुंब की ओर से जातक चिंतित बना रहता है। सातवीं शत्रुदृष्टि से षष्ठभाव को देखने से शत्रु पक्ष पर कुछ कठिनाइयों के बाद सफलता प्राप्त करता है तथा दसवीं शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखने के कारण भाग्योन्नति में कठिनाइयां आती हैं तथा धर्म और यश की उन्नति काम ही हो पाती है।

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