कुम्भ लग्न में चन्द्रमा का फल

कुम्भ लग्न का संक्षिप्त फलादेश

कुम्भ लग्न में जन्म लेने वाला व्यक्ति सुस्थिर, बातूनी, पानी का अधिक सेवन करने वाला, सुन्दर भार्या से युक्त, श्रेष्ठ मनुष्यों से संयुक्त, सर्व प्रिय, चंचल ह्रदय वाला, अधिक कामी, मित्र प्रिय, दंभी , तेजस्वी शरीर वाला, धीर, वात प्रकृति वाला, स्त्रियों के साथ रहने में अधिक प्रसन्नता पाने वाला, मोती गरदन वाला, गंजे सिर वाला, लंबे शरीर वाला, पर स्त्रियों में आसक्त. अहंकारी, ईर्ष्यालु, द्वेषी तथा भ्रातृ द्रोही होता है | वह अपनी प्रारंभिक अवस्था में दुखी रहता है, मध्यमावस्था में सुख प्राप्त करता है तथा अंतिम अवस्था में धन, पुत्र, भूमि, मकान आदि का सुख भोगता है | ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 24 अथवा 25 वर्ष की आयु में होता है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र एवं शरीर स्थान में अपने शत्रु शनि की कुम्भ राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक का शरीर कुछ रोगी रहता है | उसके मन में भी, चिंता एवं परेशानियों का निवास रहता है तथा शत्रु पक्ष से भी उसे कठिनाइयां बनी रहती हैं, परंतु वह अपने मनोबल द्वारा शत्रुओं पर प्रभाव स्थापित करता है तथा झगड़ों पर विजय भी पाता रहता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से सूर्य की सिंह राशि में सप्तमभाव को देखता है, अतः जातक का स्त्री पक्ष से भी कुछ मतभेद रहता है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में भी चिंताएं एवं परेशानियां बनी रहती हैं |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन एवं कुटुंब के भवन में अपने मित्र गुरु की कुम्भ राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक अपने मनोबल एवं परिश्रम द्वारा धन का उपार्जन करता है तथा कुटुंब की वृद्धि के लिए प्रयत्नशील बना रहता है | उसे शत्रु पक्ष से कुछ परेशानी भी रहती है, परंतु झगडे झंझटों से लाभ भी होता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से बुध की कन्या राशि में अष्टमभाव को देखता है, अतः जातक को आयु एवं पुरातत्व के विषय में कुछ परेशानी बनी रहती है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे भाई बहन एवं पराक्रम के भवन में अपने मित्र मंगल की मेष राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक के मनोबल तथा पराक्रम की वृद्धि होती है, परंतु कुछ कठिनाइयां भी आती रहती हैं, साथ ही भाई बहनो से भी कुछ मतभेद बना रहता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से सामान्य मित्र शुक्र की तुला राशि में नवमभाव को देखता है, अतः जातक की भाग्योन्नति तथा धर्म के मार्ग में भी कुछ कठिनाइयां आती हैं, परंतु अंततः प्रभाव की वृद्धि होती है और भाग्य की उन्नति भी होती है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र, माता एवं भूमि के भवन में अपने सामान्य मित्र शुक्र की वृषभ राशि पर षष्ठेश एवं उच्च के चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को माता, भूमि एवं मकान आदि का सुख प्राप्त होता है | वह शत्रु पक्ष पर प्रभावशाली रहता है तथा झगडे झंझटों के मामलों से लाभ उठाता है | यहाँ से चन्द्रमा सातवीं नीचदृश्टि से अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि में दशमभाव को देखता है, अतः जातक को पिता के सुख में कमी आती है, राज्य के क्षेत्र में झंझट तथा व्यवसाय के क्षेत्र में हानि एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण विद्या, बुद्धि एवं संतान के भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक अपने मनोबल एवं बुद्धि बल द्वारा शत्रु पक्ष पर प्रभाव रखता है, परंतु उसे विद्याध्ययन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है एवं संतानपक्ष से भी परेशानी बनी रहती है | उसके मन में और भी अनेक प्रकार की चिंताओं का निवास रहता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की धनु राशि में एकादशभाव को देखता है, अतः जातक कुछ परेशानियों से झुझते हुए अपने आमदनी की वृद्धि करता है तथा गुप्त युक्तियों के बल पर लाभ कमाता है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे रोग एवं शत्रु भवन में अपनी ही कर्क राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक शत्रु पक्ष पर अपना भारी प्रभाव रखता है तथा झगडे झंझट के मामलों में बड़े धैर्य से काम लेकर सफलता प्राप्त करता है, परंतु उसके मन में चिंताएं बनी रहती हैं | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की मकर राशि में द्वादशभाव को देखता है, अतः जातक को अपना खर्च चलाने में कठिनाइयां आती हैं तथा बाहरी स्थानों के संबंध से भी परेशानी बनी रहती है | वह अनेक प्रकार की युक्तियों का आश्रय लेकर ही अपना खर्च चलाता है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को स्त्री पक्ष से रोग, वैमनस्य तथा परेशानी बनी रहती है एवं व्यवसाय के क्षेत्र में भी कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है | ऐसा व्यक्ति शत्रु पक्ष पर अपना प्रभाव रखता है तथा झगडे झंझट के मामलों से शक्ति प्राप्त करता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की कुम्भ राशि में प्रथमभाव को देखता है, अतः जातक को रोग एवं चिंताओं का शिकार बनना पड़ता है, परंतु उसका मनोबल बढ़ा रहता है | साथ ही उसे दौड़ धूप भी करनी पड़ती है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें आयु एवं पुरातत्व के भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को आयु एवं संबंध में कुछ परेशानी रहती है एवं पुरातत्व की भी हानि होती है | वह शत्रु पक्ष पर बड़ी कठिनाइयों से प्रभाव स्थापित कर पाता है | उसे हर समय चिंताएं घेरे रहती हैं | ऐसे व्यक्ति का ननिहाल पक्ष भी कमजोर रहता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की मीन राशि में द्वितीयभाव को देखता है, अतः जातक धन एवं कुटुंब की वृद्धि के लिए विशेष परिश्रम करता है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण, भाग्य एवं धर्म के भवन में अपने सामान्य मित्र शुक्र की तुला राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक के भाग्य एवं धर्म की उन्नति में कुछ कठिनाइयां आती हैं तथा यश की भी कमी रहती है | ऐसा व्यक्ति शत्रु पक्ष पर प्रभाव रखता है तथा झगडे झंझट के मामलों से लाभ प्राप्त करता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से मंगल की मेष राशि में तृतीयभाव को देखता है, अतः जातक को भाई बहन के संबंध में कुछ परेशानी का सामना करना पड़ता है, परंतु उसके पराक्रम एवं मनोबल की वृद्धि होती है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र, पिता, राज्य एवं व्यवसाय के भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित षष्ठेश एवं नीच के चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को पिता पक्ष से सुख में कमी रहती है | राज्य के क्षेत्र से सम्मान में कुछ हानि प्राप्त होती है, तथा व्यावसायिक उन्नति में रुकावटें आती रहती हैं | ऐसा व्यक्ति शत्रु पक्ष से परेशान बना रहता है तथा उसका प्रभाव भी कम होता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं उच्चदृष्टि से सामान्य मित्र शुक्र की वृषभ राशि में चतुर्थभाव को देखता है, अतः उसे माता, भूमि एवं मकान आदि का सामान्य सुख भी प्राप्त होता है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें लाभ भवन में अपने मित्र गुरु की धनु राशि पर स्थित षष्ठेश चन्द्रमा के प्रभाव से जातक अपने मनोबल एवं परिश्रम द्वारा आमदनी की वृद्धि करता है | वह शत्रु पक्ष पर प्रभाव बनाय रखता है तथा झगडे झंझट के मामलों से लाभ उठाता है | परंतु उसे अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए दौड़ धूप अधिक करनी पड़ती है तथा लाभ के पक्ष से कुछ असंतोष भी बना रहता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से बुध की मिथुन राशि में पंचमभाव को देखता है, अतः जातक को विद्या, बुद्धि की यथेष्ट शक्ति प्राप्त होती है, परंतु संतानपक्ष से कुछ चिंता बनी रहती है |

जिस जातक का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो, उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्यय स्थान में अपने शत्रु शनि की मकर राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को अपना खर्च चलाने के लिए कठिनाई बनी रहती है | वह अपने मनोबल तथा परिश्रम द्वारा खर्च चलाता है | बाहरी स्थानों के संबंध से भी परेशानी होती है | शत्रु पक्ष से मानसिक चिंताएं बनी रहती हैं | यहाँ से चन्द्रमा सातवीं दृष्टि से अपनी ही कर्क राशि में षष्ठभाव को देखता है, अतः जातक शत्रु पक्ष पर नरमाई से काम लेकर अपना प्रभाव स्थांपित करता है एवं सफलता प्राप्त करता है |

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