धनु लग्न में सूर्य का फल

धनु लग्न का संक्षिप्त फलादेश

धनु लग्न में जन्म लेने वाला जातक कार्य करने में कुशल, ब्राह्मण तथा देवताओं का भक्त, घोड़ों को रखने वाला, मित्रों के काम आने वाला, राजा के समीप रहने वाला, ज्ञानवान, अनेक कलाओं का ज्ञाता, सत्यप्रतिज्ञ, बुद्धिमान, सुन्दर, सती गुनी, श्रेष्ठ स्वभाव वाला, धनी, ऐश्वर्यवान, कवि, लेखक,व्यवसायी, यात्रा प्रेमी, पराक्रमी, अलप संततिवान, प्रेम ले वशीभूत रहने वाला, पिंगल वर्ण, घोड़े के समान जाघों वाला, बड़े दांतों वाला तथा प्रतिभाशाली होता है |

ऐसा व्यक्ति बाल्यावस्था में अधिक सुख भोगने वाला, मध्यमावस्था में सामान्य जीवन व्यतीत करने वाला तथा अंतिम अवस्था में धन धान्य तथा ऐश्वर्य से पूर्ण होता है | उसे 22 अथवा 23 वर्ष की आयु में धन का विशेष लाभ होता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपने मित्र गुरु की धनु राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को श्रेष्ठ शारीरिक शक्ति एवं अधिक बल की प्राप्ति होती है | ऐसा व्यक्ति भाग्यवान, धर्म- पालक तथा ईश्वर भक्त होता है | यहाँ से सूर्य सातवीं दृष्टि से बुध की मिथुन राशि में सप्तमभाव को देखता है, अतः जातक को सुन्दर तथा भाग्यशालिनी स्त्री मिलती है और उससे सहयोग भी प्राप्त होता है | साथ ही दैनिक व्यवसाय में लाभ होता है और ग्रेह्स्थी का सुख भी प्राप्त होता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन तथा कुटुंब के भवन में अपने शत्रु शनि की राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को धन संचय में कुछ कठिनाइयों के साथ अच्छी सफलता मिलती है | उसे कुटुंब का सुख भी कुछ मतभेदों के साथ प्राप्त होता है | स्वार्थ सिद्धि की दृष्टि से वह धर्म का पालन भी करता है | यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से चन्द्रमा की कर्क राशि में अष्टमभाव को देखता है, अतः जातक की आयु में वृद्धि होती है, पुरातत्व का लाभ होता है तथा भाग्योन्नति में भी सहायता प्राप्त होती है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे भाई बहन एवं पराक्रम के स्थान में अपने शत्रु शनि की कुम्भ राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को भाई बहनो का सुख तो कुछ असंतोष के साथ मिलता है, परन्तु पराक्रम में अत्यधिक वृद्धि होती है | ऐसा व्यक्ति ईश्वर पर भरोसा रखने वाला तथा पुरुषार्थ द्वारा अपने भाग्य की उन्नति करने वाला होता है | यहाँ से सूर्य सातवीं दृष्टि से अपनी ही सिंह राशि में नवमभाव को देखता है, अतः पुरुषार्थ के द्वारा जातक के भाग्य की अत्यअधियक वृद्धि होती है और वह धर्म का भी यथोचित पालन करता है | ऐसा व्यक्ति बड़ा यशस्वी, हिम्मती तथा शक्तिशाली होता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र, माता एवं भूमि के भवन में अपने मित्र गुरु की मीन राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव् से जातक को ,माता का सुख बहुत मिलता है तथा भूमि, मकान आदि की शक्ति भी प्राप्त होती है | उसकी भाग्योन्नति होती रहती है तथा धर्म में भी रूचि बनी रहती है | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से बुध की कन्या राशि में दशमभाव को देखता है, अतः जातक को पिता द्वारा शक्ति, राज्य द्वारा सम्मान एवं व्यवसाय द्वारा लाभ एवं उन्नति के योग प्राप्त होते रहते हैं | वह धनी, यशस्वी तथा सुखी जीवन व्यतीत करता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण, विद्या एवं संतान के भवन में अपने मित्र मंगल की मेष राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को संतान का सुख एवं विद्या तथा बुद्धि का लाभ यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है | ऐसा व्यक्ति बड़ा विद्वान्, ज्ञानी, बुद्धिमान तथा धार्मिक विचारों का होता है | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं नीचदृश्टि से शत्रु शुक्र की तुला राशि में एकादशभाव को देखता है, अतः जातक को आमदनी के क्षेत्र में कठिनाइयां आती हैं | उसकी वाणी प्रखर होती है, जिसके कारण उसे लाभ के क्षेत्र में हानि उठानी पड़ती है | उसमे शिष्टाचार एवं सज्जनता की कमी रहती है , फलतः ऐसा व्यक्ति अपनी सामाजिक अथवा आर्थिक उन्नति अधिक नहीं कर पाता |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे शत्रु एवं रोग भवन में अपने शत्रु शुक्र की वृषभ राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक शत्रु पक्ष पर अत्याधिक प्रभावशाली बना रहता है तथा झगडे झंझट के मार्ग से भाग्योन्नति एवं सफलता प्राप्त करता है | धर्म का पालन करने में उसे विशेष रूचि नहीं होती | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से मंगल की वृश्चिक राशि में द्वादशभाव को देखता है, अतः जातक का खर्च अधिक रहता है , परन्तु उसे बाहरी स्थानों से लाभ होता रहता है , जिसके कारण खर्च चलता रहता है तहा भागय में वृद्धि होती है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक स्त्री पक्ष से सुख प्राप्त करता है | उसका ग्रहस्थ जीवन आनंद से व्यतीत होता है, साथ ही व्यवसाय के क्षेत्र में भी उसे सफलता मिलती है | ऐसा व्यक्ति भाग्य की शक्ति का भरोसा रखता है तथा ईश्वर भक्त भी होता है | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की धनु राशि में प्रथमभाव को देखता है, अतः जातक को श्रेष्ठ शारीरिक सुख एवं प्रभाव की प्राप्ति होती है | वह धर्म का पालन करता है तथा भाग्यवान होता है, परन्तु उसकी स्त्री का स्वाभाव कुछ तेज होता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें आयु एवं पुरातत्व के भवन में अपने मित्र चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक की आयु में वृद्धि होती है तथा पुरातत्व का लाभ होता है | उसका दैनिक जीवन प्रभावशाली रहता है, परन्तु भाग्योन्नति में बहुत सी रुकावटें आती हैं और विलंब से भाग्य की वृद्धि होती है | यहाँ से सूर्य सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की मकर राशि के द्वितीयभाव को देखता है, अतः जातक को धन संचय के मार्ग में कुछ कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं तथा कौटुम्बिक सुख में भी कमी आती है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण, भाग्य एवं धर्म के भवन में अपनी ही सिंह राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक के भाग्य की विशेष उन्नति होती है और वह धर्म का भी यथाविधि पालन करता है | ऐसा व्यक्ति बड़ा प्रभावशाली तथा यशस्वी होता है | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की कुम्भ राशि में तृतीयभाव को देखता है, अतः जातक के पराक्रम में कुछ कमी आती है, साथ ही भाई बहनो से भी कुछ मतभेद रहता है | ऐसा व्यक्ति पुरुषार्थ के मुकाबले भाग्य पर अधिक आश्रित रहता है, परन्तु वह भाग्यवान समझा जाता है तथा उसका जीवन सामान्यतः सुखी रहता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र पिता एवं राज्य के भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को पिता द्वारा बहुत सहयोग मिलता है, राज्य के क्षेत्र से सम्मान की प्राप्ति होती है तथा व्यवसाय में उन्नति होती रहती है | ऐसा व्यक्ति बड़ा भाग्यशाली होता है तथा धर्म का भी यथोचित पालन करता है | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की मीन राशि में चतुर्थभाव को देखता है, अतः जातक को माता, भूमि एवं मकान का यथेष्ट सुख भी प्राप्त होता है | वह प्रतिष्ठित तथा यशस्वी होता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें लाभ भवन में अपने शत्रु शुक्र की तुला राशि पर स्थित नीच के सूर्य के प्रभाव से जातक की आमदनी में वृद्धि तो होती है, परन्तु उसमे कुछ कठिनाइयां भी उपस्थित होती रहती हैं | यहाँ से सूर्य सातवीं उच्च दृष्टि से मंगल की मेष राशि में पंचमभाव को देखता है, अतः जातक को संतान एवं विद्या के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है | वह विद्वान. बुद्धिमान, गुणवान, धर्मज्ञ, सज्जन तथा श्रेष्ठ वाणी बोलने वाला होता है | ऐसा व्यक्ति सामान्य सुखी जीवन व्यतीत करता है |

जिस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्यय स्थान में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक का खर्च रहता है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से कुछ विलंब के साथ लाभ एवं सफलता का अवसर प्राप्त करता है | वह धर्म का पालन करने में अधिक रूचि नहीं रखता, परन्तु उसका खर्च धार्मिक एवं परोपकार के मामलों में ही अधिक होता है | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं शत्रुदृष्टि से शुक्र की वृषभ राशि में षष्ठभाव को देखता है, अतः जातक शत्रुओं पर प्रभाव रखने वाला होता है तथा झगडे झंझट के मामलों से लाभ एवं सफलता प्राप्त करता है |

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