तिथियों के स्वामी
प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि, द्वितीय के ब्रह्मा, तृतीया की गौरी, चतुर्थी के गणेश, पंचमी के शेषनाग, षष्ठी के कार्तिकेय, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नवमी की दुर्गा, दशमी के काल, एकादशी के विश्वेदेवा, द्वादशी के विष्णु, त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के शिव, पूर्णमासी के चन्द्रमा तथा अमावस्या के पितर हैं |
तिथियों के शुभाशुभ का ज्ञान प्राप्त करते समय उनके स्वामियों के संबंध में विचार किया जाता है | जिस तिथि के स्वामी का जैसा स्वाभाव है, वही स्वाभाव उस तिथि का भी होता है |
नक्ष्त्र
आकाश- मंडल में असंख्य तारिकाओं के समूहों द्वारा जो विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनती हैं, उन्ही आकृतियों, अर्थात ताराओं के समूह को ” नक्षत्र ” कहा जाता है |
जिस प्रकार पृथ्वी पर स्थान की दुरी को मील अथवा किलोमीटरों में नापी जाती है, उसी प्रकार आकाश – मंडल की दुरी को नक्षत्रों द्वारा ज्ञात किया जाता है |
ज्योतिषशास्त्र ने सम्पूर्ण आकाश – मंडल को सत्ताईस भागों में विभाजित किया है और प्रत्येक भाग का नाम एक एक नक्षत्र रख दिया है | नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं –
(1) अशिवनी , (2) भरणी , (3) कृत्तिका , (4) रोहिणी , (5) मृगशिरा , (6) आर्द्रा , (7) पुनर्वसु , (8) पुष्य , (9) आश्लेषा , (10) मघा , (11) पूर्वाफाल्गुनी , (12) उत्तराफाल्गुनी , (13) हस्त , (14) चित्रा , (15) स्वाति , (16) विशाखा , (17) अनुराधा , (18) ज्येष्ठा , (19) मूल, (20) पूर्वाषाढ़ा , (21) उत्तराषाढ़ा , (22) श्रवण , (23) धनिष्ठा , (24) शतभिषा , (25) पूर्वाभाद्रपद , (26) उत्तरा भाद्रपद और (27) रेवती
नक्षत्रों के स्वामी
अशिवनी नक्षत्र के स्वामी अशिवनी कुमार, भरणी के काल, कृत्तिका के अग्नि, रोहिणी के ब्रह्मा, मृगशिरा के चन्द्रमा, आर्द्रा के रूद्र, पुनर्वसु के अदिति , पुष्य के ब्रहस्पति , आश्लेषा के सर्प , मघा के पितर, पूर्वाफाल्गुनी के भग, उत्तरा फाल्गुनी के अर्यमा, हस्त के सूर्य, चित्रा के विशवकर्मा, स्वाति के पवन, विशाखा के शुक्रागिन, अनुराधा के मित्र, ज्येष्ठा के इंद्र, मूल के नितृती , पूर्वाषाढ़ा के जल, उत्तराषाढ़ा के विश्वदेव, अभिजीत के ब्रह्मा, श्रवण के विष्णु, धनिष्ठा के वसु, शतभिषा के वरुण, पूर्वाभाद्रपद के अजैकपाद , उत्तराभाद्रपद के अहिर्बुध्न्य तथा रेवती के पूषा हैं | इन नक्षत्रों के स्वामियों का जैसा गुण- स्वाभाव है , वैसा ही गुण – स्वाभाव नक्षत्रों का भी होता है |
नक्षत्रों के चरण
ज्योतिषशास्त्र ने सूक्षम्ता से समझने के लिए प्रय्तेक नक्षत्र के चार चार भाग्य किये हैं, जिन्हे प्रथम चरण, द्वितीय चरण, तृतीया चरण तथा चतुर्थ चरण कहा जाता है |
नक्षत्रों के चरणाक्षर
प्रत्येक नक्षत्र के जो चार चार चरण होते हैं , उनमे से प्रत्येक नक्षत्र के प्रत्येक चरण का एक एक ‘ अक्षर ‘ ज्योतिषशास्त्र ने निर्धारित कर दिया है | जिस नक्षत्र के जिस चरण में जिस व्यक्ति का जन्म होता है, उसका नाम उसी जन्मकालीन नक्षत्र के चरणाक्षर पर रखा जाता है | उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का जन्म अशिवनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में हुआ है, तो उसका नाम अशिवनी नक्षत्र के द्वितीय चरणाक्षर ‘ चे ‘ से प्रारम्भ करके ‘चेतराम’ , चेतसिंह , चैतन्यदास आदि रखा जाएगा | किस नक्षत्र के कौन कौन से चरणाक्षर होते हैं, इसे आगे लिखे अनुसार समझना चाहिए |