माता-पिता की मृत्यु एक दुःखद घटना होती है, जिससे परिवार के सभी सदस्य अधीन और अवसादित हो जाते हैं। हिंदू धर्म में, माता-पिता का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है और उनका आदर करना धर्म का मौलिक सिद्धांत है। माता-पिता की मृत्यु के बाद, पुत्र या पुत्रियों के सिर का मुंडन कराया जाता है। इस प्रथा के पीछे क्या कारण होते हैं और हिंदू धर्म में इसकी क्या मान्यता है, उसे हम निम्नलिखित प्रकार से जान सकते हैं।
1. पितृ दोष का प्रभाव: हिंदू धर्म में माना जाता है कि पितृ दोष या पितृ शाप के कारण, माता-पिता की मृत्यु के बाद उनके बच्चों के ऊपर अधिक अशुभ प्रभाव पड़ता है। इसलिए, उनके सिर का मुंडन कराकर यह प्रभाव कम किया जा सकता है।
2. पितृ गति में आसानी: हिंदू धर्म में माना जाता है कि मृत्यु के बाद, आत्मा को पितृ गति में जाने के लिए अपने सभी संलग्नता को छोड़ देना चाहिए। इसलिए, उनके सिर का मुंडन उनकी आत्मा को उसके आगामी यात्रा के लिए स्वतंत्र बनाता है।
3. शोक के प्रतीक: समाज में, माता-पिता की मृत्यु के बाद उनके बच्चों के सिर का मुंडन एक प्रकार का शोक प्रकट करने का एक प्रतीक माना जाता है। इसके माध्यम से, वे अपने अधिकारियों और समाज को यह बता देते हैं कि वे अपने माता-पिता की अभाव में शोक कर रहे हैं।
4. सामाजिक मान्यता: हिंदू समाज में, माता-पिता की मृत्यु के बाद उनके बच्चों के सिर का मुंडन एक आदर्श कार्य माना जाता है। इसके माध्यम से, उन्हें समाज की सेवा और आदर्शों का पालन करने का संदेश दिया जाता है।
5. कर्म की महत्ता: ‘गरुड़ पुराण’ में कहा गया है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद, उनके बच्चों के लिए समर्पित कर्म और प्रार्थना का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।
सार्वजनिक रूप से, माता-पिता की मृत्यु के बाद सिर का मुंडन कराना एक प्राचीन परंपरा है जो हिंदू समाज में प्रचलित है। इसका महत्व धार्मिक, सामाजिक, और मानसिक स्तर पर है और यह एक श्रद्धापूर्ण प्रक्रिया है जो उनके प्रियजनों के यादों को समर्पित करती है। इसके अतिरिक्त, ‘गरुड़ पुराण’ ने इस प्रक्रिया को महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक कार्य के रूप में स्थान दिया है।