वृष लग्न की कुंडली में केतु का फल

वृष लग्न का संक्षिप्त फलादेश

वृषभ लग्न में जन्म लेने वाले जातक के शरीर का रंग गोरा अथवा गेहुंआ होता है | वह स्त्रियों जैसे स्वभाव वाला शौकीन तबीयत का, मधुर भाषी, रजोगुणी, लम्बे दांत तथा कुंचित केशों वाला, श्रेष्ठ संगति में बैठने वाला, ऐश्वर्यशाली, उदार स्वाभाव वाला, भक्त, गुणवान, बुद्धिमान, धैर्यवान, शुर- वीर , साहसी, अत्यंत यशस्वी, अत्यंत शांत प्रकृति का, परन्तु अवसर पड़ने पर लड़ने अथवा युद्ध करने में अपने प्रबल पराक्रम को प्रकट करने वाला , अपने परिवार वालों से अनाहत, कलहयुक्त, शास्त्र से अभिज्ञात पाने वाला, मानसिक रोग अथवा चिंताओं से पीड़ित एवं दुखी रहने वाला, मित्र- वियोगी तथा पूर्णायु प्राप्त करने वाला होता है | 

वृष लग्न में केतु का फल

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपने मित्र शुक्र की वृष राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक के शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी आती है तथा मन में गुप्त चिंताएं भी बनी रहती है, परन्तु इसके साथ ही उसका मनोबल बहुत बढ़ा हुआ रहता है, फलस्वरूप वह जिद्दी, हठी, चतुर तथा चालाक भी होता है | ऐसा जातक अपने शारीरिक परिश्रम एवं योग्यता के प्रभाव से अन्य लोगों को प्रभावित करने की सामर्थ्य भी रखता है | साथ ही उसके शरीर में किसी घाव अथवा चोट का निशान भी होता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन व कुटुंब के भवन में धनु राशि स्थित नीच के केतु के प्रभाव से जातक को धन एवं कुटुंब के क्षेत्र में बड़ी कठिनाइयों , परेशानियों एवं चिंताओं का सामना करना पड़ता है | फलतः कभी कभी उसे प्रतिष्ठा बचाना भी कठिन हो जाता है | ऐसा जातक अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए गुप्त युक्तियों एवं कठिन परिश्रम का सहारा लेता है | परन्तु उसके बावजूद भी उसे धन तथा कुटुंब का यथोचित सुख प्राप्त नहीं होता |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव  में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे पराक्रम एवं भाई के स्थान में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक के पराक्रम में कमी आती है | इसी प्रकार भाई- बहनो के सम्बन्ध से भी उसे कष्ट और हानि का सामना करना पड़ता है , परन्तु तीसरे स्थान में बैठा हुआ क्रूर ग्रह विशेष शक्तिशाली होता है | इस कारण जातक अपनी आंतरिक कमजोरी एवं अभावों की चिंता न करते हुए बहुत हिम्मत, हाथ, धैर्य एवं परिश्रम से काम लेता है तथा थोड़ी बहुत सफलता भी प्राप्त करता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र, माता, भूमि एवं सुख के भवन में अपने शत्रु की सिंह राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को माता, भूमि, भवन तथा सुख के क्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा इन सबकी प्राप्ति के लिए उसे कठिन परिश्रम, धैर्य एवं गुप्त युक्तियों का आश्रय लेना पड़ता है | ऐसी ग्रह स्थिति वाले जातक को अपनी जन्मभूमि का वियोग भी सहन करना पड़ता है तथा उसके घरेलू सुख- साधनो में भी कमी और कष्ट बने रहते हैं |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण तथा विद्या- संतान के भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को विद्या, बुद्धि तथा संतान के क्षेत्र में कमी एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, परन्तु मित्रक्षेत्री होने के कारण गुप्त युक्तियों , धैर्य एवं साहस के द्वारा उसे सामान्य सफलता प्राप्त हो जाती है | ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक अपने मन्तव्य को स्पष्ट शब्दों में प्रकट नहीं कर पाता , परन्तु बहुत साहसी तथा धैर्यवान होता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे शत्रु तथा रोग भवन में अपने मित्र शुक्र की राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक शत्रुओं पर अपना विशेष प्रभाव बनाए रखता है तथा अपनी हिम्मत, धैर्य एवं गुप्त युक्तियों के बल पर अनेक प्रकार की कठिनाइयों तथा विघ्न- बाधाओं पर विजय प्राप्त करता रहता है | ऐसा जातक चतुर, बड़ा परिश्रमी, साहसी, धैर्यवान तथा गुप्त युक्तियों का जानकार होता है, परन्तु मामा के पक्ष से कुछ हानि प्राप्त होती है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने शत्रु मंगल की राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को अपनी स्त्री के पक्ष में कष्ट तथा हानि उठानी पड़ती है | उसे मूत्राशय में किसी रोग तथा प्रमेह आदि का शिकार भी बनना पड़ता है | व्यवसाय के पक्ष में जातक को कठिन संघर्ष एवं संकटों का सामना करते हुए गुप्त युक्तियों एवं धैर्य से काम लेना पड़ता है | घरेलू जीवन तथा व्वयसाय के क्षेत्र में कभी कभी बड़ी विफलताओं का सामना करना पड़ता है, परन्तु परेशानियों के द्वारा उसे कुछ शक्ति भी प्राप्त होती है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें मृत्यु तथा पुरातत्व के भवन में अपने शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित उच्च के केतु के प्रभाव से जातक की आयु में वृद्धि होती है तथा पुरातत्व सम्बन्धी कोई विशेष लाभ भी मिलता है | ऐसे जातक को अपने जीवन निर्वाह के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है तथा कभी कभी सामान्य परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है, परन्तु वह अत्यंत साहसी, गुप्त युक्ति से संपन्न तथा धैर्यवान होता है और अपना जीवन शान- शौकत के साथ व्यतीत करता है

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण तथा भाग्य भवन में अपने मित्र शनि की राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक कठिन परिश्रम के द्वारा अपने भाग्य की उन्नति करता है | इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भी कुछ कमी के साथ सफलता प्राप्त करता है | वह अपनी भाग्य वृद्धि के लिए बड़ी हिम्मत तथा गुप्त शक्तियों से काम लेता है तथा धर्म में आस्था होते हुए भी उसमे कोई विशेष श्रद्धा नहीं रखता |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र, पिता एवं राज्य भवन में अपने मित्र शनि की कुम्भ राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को पिता के सम्बन्ध में कुछ कमी आ जाती है | इसी प्रकार राज्य तथा मान- प्रतिष्ठा के क्षेत्र में भी उसे कुछ कठिनाइयों के साथ सामान्य सफलता प्राप्त होती है | ऊपरी तौर पर जातक धनी, सुखी तथा सम्मानित प्रतीत होता है, परन्तु भीतरी रूप में वह कमजोर बना रहता है | अपनी उन्नति के क्षेत्र में उसे कभी कभी विशेष संकटों का सामना करना पड़ता है | ऐसा जातक परिश्रमी तथा साहसी होता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें लाभ भवन में अपने शत्रु गुरु की मीन राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को आमदनी के क्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, परन्तु एकादशभाव में बैठा हुआ क्रूर ग्रह विशेष प्रभावशाली होता है, इसलिए उसे अच्छा लाभ भी प्राप्त होता है | कठिन परिश्रम के उपरान्त जातक को यथेष्ट धन की प्राप्ति होती है तथा कभी कभी विशेष संकटों का सामना भी करना पड़ता है | ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक आशावादी , हिम्मती, धैर्यवान, चतुर तथा परिश्रमी होता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्ययभाव में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को अपना खर्च चलाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | इसी प्रकार बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से भी उसे परेशानियां उठानी पड़ती हैं | क्रूर ग्रह की राशि पर क्रूर ग्रह की उपस्थिति के कारण जातक घोर परिश्रमी तथा कठिनाइयों पर विजय पाने वाला होता है, अतः ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक बड़ा साहसी , उद्योगी, धैर्यवान तथा चतुर भी होता है |

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