Vrish Lagan Mein Chandarma ka Phal

वृषभ लग्न की कुंडली में चंद्रमा का फल

वृष लग्न का संक्षिप्त फलादेश

वृषभ लग्न में जन्म लेने वाले जातक के शरीर का रंग गोरा अथवा गेहुंआ होता है | वह स्त्रियों जैसे स्वभाव वाला शौकीन तबीयत का, मधुर भाषी, रजोगुणी, लम्बे दांत तथा कुंचित केशों वाला, श्रेष्ठ संगति में बैठने वाला, ऐश्वर्यशाली, उदार स्वाभाव वाला, भक्त, गुणवान, बुद्धिमान, धैर्यवान, शुर- वीर , साहसी, अत्यंत यशस्वी, अत्यंत शांत प्रकृति का, परन्तु अवसर पड़ने पर लड़ने अथवा युद्ध करने में अपने प्रबल पराक्रम को प्रकट करने वाला , अपने परिवार वालों से अनाहत, कलहयुक्त, शास्त्र से अभिज्ञात पाने वाला, मानसिक रोग अथवा चिंताओं से पीड़ित एवं दुखी रहने वाला, मित्र- वियोगी तथा पूर्णायु प्राप्त करने वाला होता है | 

वृष लग्न में चन्द्रमा का फल

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र एवं शरीर स्थान में अपने मित्र शुक्र की वृष राशि पर उच्च चन्द्रमा की स्थिति के प्रभाव से जातक का मनोबल बहुत बढ़ा रहता है | साथ ही उसे भाई बहनो का सुख एवं पराक्रम द्वारा सफलता तथा सम्मान की प्राप्ति होती है | परन्तु यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं नीचदृश्टि से सप्तमभाव को भी देखता है, अतः उसे स्त्री एवं व्यवसाय के पक्ष में कुछ असंतोष बना रहता है तथा परिवार का संचालन करने में भी उसे कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन तथा कुटुंब के भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक अपने पराक्रम द्वारा धन संचय तथा कौटुम्बिक सुख को प्राप्त करता है, परन्तु भाई बहनो के सुख एवं शारीरिक पुरुषार्थ में कुछ कमी भी बनी रहती है | इस स्थान से सूर्य सातवीं दृष्टि से अष्टमभाव को अपने मित्र गुरु की धनु राशि में देखता है, अतः जातक की आयु में वृद्धि होती है तथा पुरातत्व का लाभ भी होता है | संक्षेप में ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे भाई एवं पराक्रम के घर में अपनी राशि पर बैठे हुए चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को भाई बहनो का सुख प्राप्त होता है तथा पराक्रम में वृद्धि होती है, जिसके कारण जातक बड़ा हिम्मती, परिश्रमी, पुरुषार्थी, साहसी तथा प्रसन्नचित बना रहता है और इन सबके कारण उसे यश तथा मान भी प्राप्त होता है | यहाँ से चन्द्रमा सातवीं दृष्टि से अपने शत्रु शनि की मकर राशि में नवमभाव को देखता है, जिसके कारण जातक को अपने भाग्य की वृद्धि के लिए विशेष परिश्रम करना पड़ता है तथा धर्म पालन में भी कोई अधिक रूचि नहीं होती |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र , माता, सुख तथा भूमि के भवन में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि पर बैठे हुए चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को माता के सुख में वृद्धि तथा भूमि , मकान, सुख इत्यादि का लाभ होता है | इसके साथ ही उसके भाई- बहन तथा पराक्रम के पक्ष में भी उन्नति होती है | घरेलू सुख के साधनों में भी सफलता मिलती है | यहाँ से चन्द्रमा सातवीं दृष्टि से दशमभाव को अपने शत्रु शनि की कुम्भ राशि में देखता है, अतः जातक को पिता तथा राज्य के क्षेत्र में कुछ परिश्रम के बाद सफलता प्राप्त होगी – ऐसा समझना चाहिए |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण एवं विद्या- बुद्धि तथा संतान के भाव में अपने मित्र बुध की राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को विद्या, बुद्धि तथा संतान के पक्ष में विशेष सफलता प्राप्त होती है | साथ ही छोटे भाई बहनो से सुन्दर सम्बन्ध बना रहता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से अपने सामान्य मित्र ब्रहस्पति की मीन राशि में एकादश भाव को देखता है , अतः जातक को अपने मनोबल एवं बुद्धि योग के द्वारा आय, संपत्ति तथा ऐश्वर्य के पक्ष में भी विशेष सफलता प्राप्त होती रहेगी तथा जातक सुखी एवं धनी बना रहता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे शत्रु एवं रोग स्थान में अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को शत्रु पक्ष में प्रभाव प्राप्त होगा तथा कुछ परेशानियों के साथ झगडे- झंझटों के मामलों में सफलता प्राप्त करेगा | पराक्रमेश चन्द्रमा की छठे भाव में स्थिति के कारण जातक के मन के भीतर बड़ी हिम्मत तथा शक्ति रहने पर भी कुछ परेशानियां बनी रहेंगी तथा भाई बहन के संबंधों में भी कुछ मन- मुटाव रहेगा | यहाँ से चन्द्रमा सातवीं दृष्टि से अपने मित्र मंगल की मेष राशि में व्यय भाव को देखता है, अतः जातक खर्च खूब करेगा तथा बाहरी स्थानों के सम्बन्ध में लाभ उठाएगा |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र , स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में स्थित अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित नीचे के चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को स्त्री तथा व्यवसाय के क्षेत्र में चिंता, हानि तथा कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा | साथ ही भाई बेहेन के सम्बन्धो में भी त्रुटि बनी रहेगी | यहाँ से चन्द्रमा सातवीं उच्च दृष्टि से अपने सामान्य मित्र शत्रु की वृष राशि में शरीर स्थान को देखता है, अतः जातक का शरीर सुन्दर होगा और उसे हृदय के भीतर शक्ति एवं बाहर यश तथा मान- प्रतिष्ठा की प्राप्ति भी होती रहेगी |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें मृत्यु तथा पुरातत्व के भवन में अपने मित्र गुरु की धनु राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को आयु एवं पुरातत्व के सम्बन्ध में लाभ प्राप्त होगा , परन्तु पराक्रम स्थान कमजोर हो जाने के कारण पुरुषार्थ एवं भाई बहन के सुख में कमी बनी रहेगी | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में द्वितीयभाव को देखता है , अतः जातक को धन तथा कुटुंब के सम्बन्ध में कुछ सफलता प्राप्त होगी, परन्तु उसके लिए उसे विशेष परिश्रम करना पड़ेगा |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव  में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण तथा भाग्य भवन में अपने शत्रु शनि की मकर राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को भाग्य तथा धर्म के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है | साथ ही भाई- बहन का सहयोग भी मिलता है | फलतः जातक भाग्यवान एवं धर्मात्मा समझा जाता है | यहाँ से चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से कर्क राशि के स्वक्षेत्र में तृतीयभाव को भी देखता है, अतः उसे भाई – बहन तथा पराक्रम के क्षेत्र में भी विशेष शक्ति प्राप्त होती है | ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक उद्योगी, स्फूर्तिवान, हिम्मतवर तथा प्रसन्न स्वभाव वाला होता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र, राज्य तथा पिता के भवन में अपने शत्रु शनि की मकर राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक का अपने पिता के साथ थोड़ा मतभेद बना रहता है तथा राजकीय क्षेत्र में कठिन परिश्रम के द्वारा सफलता प्राप्त होती है, परन्तु भाई – बहन के सुख एवं पराक्रम की सहज वृद्धि होती रहती है | इस स्थान में चन्द्रमा की सातवीं दृष्टि अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि वाले चतुर्थ भवन में पड़ती है, अतः जातक को माता, भूमि, मकान आदि का सुख भी प्राप्त होता है और पुरुषार्थ द्वारा घरेलू सुख में भी वृद्धि होती है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें लाभ एवं आमदनी के भवन में अपने मित्र गुरु की मीन राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को आय के क्षेत्र में अपने पुरुषार्थ द्वारा बड़ी सफलता प्राप्त होती है | साथ ही भाई बहन एवं पराक्रम का लाभ भी मिलता है | उन्नति करने के लिए उसके विचारों में निरंतर परिवर्तन होता रहता है तथा उसे इच्छित संपत्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होते रहते हैं | इसी स्थान से चन्द्रमा सातवीं दृष्टि से अपने मित्र बुध की कन्या राशि में पंचमभाव को देखता है, अतः जातक को विद्या, बुद्धि एवं संतान के पक्ष में सफलता प्राप्त होती रहेगी | ऐसा जातक विद्वान्, बुद्धिमान तथा मधुरभाषी होता है |

जिस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में चन्द्रमा की स्थिति हो , उसे चन्द्रमा का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्यय- स्थान में अपने मित्र मंगल की मेष राशि पर स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक रहेगा तथा बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से उसे शक्ति प्राप्त होगी | साथ ही भाई- बहन के सुख एवं पराक्रम की भी हानि होगी | इस स्थान में चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से अपने सामान्य मित्र शुक्र की तुलाराशि में षष्ठभाव को देख रहा है, अतः जातक शत्रु पक्ष एवं झगडे- झंझट के मामलों में बड़ी युक्तियों से काम लेकर सफलता प्राप्त करेगा |