सिंह लग्न में सूर्य का फल

सिंह लग्न का संक्षिप्त फलादेश

सिंह लग्न में जन्म लेने वाले जातक के शरीर पांडुवर्ण होता है | वह पित्त तथा वायु विकार से पीड़ित रहने वाला, मांसभोजी, रसीली वस्तुओं को पसंद करने वाला, कृशोदर, अल्पभोजी, अल्प पुत्रवान, अत्यंत पराक्रमी, अहंकारी, भोगी, तीक्ष्ण – बुद्धि, ढीठ, वीर, भ्र्मणशील, रजोगुणी, क्रोधी, बड़े हाथ – पाँव तथा चौड़ी छाती वाला, उग्र स्वाभाव का, वेदांत विद्या का ज्ञाता, घोड़े की सवारी से प्रेम रखने वाला, अस्त्र- शस्त्र चलाने में निपुण , तेज स्वभाव वाला, उदार तथा साधू- संतो की सेवा करने वाला होता है |

सिंह लग्न में जन्म लेने वाला जातक प्रारंभिक अवस्था में सुखी, मध्यावस्था में दुखी तथा अंतिम अवस्था में पूर्ण सुखी होती है | उसका भाग्योदय २९ से २८ वर्ष की आयु के बीच का होता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपनी सिंह राशि पर स्थित स्वक्षेत्री सूर्य के प्रभाव से जातक की शारीरिक शक्ति, आत्मबल, स्वाभिमान, सौंदर्य, हिम्मत तथा प्रभाव में वृद्धि होती है | ऐसा जातक लंबे कद का होता है | यहाँ से सूर्य सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की कुम्भ राशि में सप्तमभाव को देखता है, अतः जातक को स्त्रीपक्ष से असंतोष रहता है तथा दैनिक खर्च एवं व्यवसाय के मार्ग में भी कुछ कठिनाइयां आती रहती हैं |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन तथा कुटुंब के भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक के धन तथा कुटुंब के सुख में वृद्धि होती है, परन्तु वह स्थान बंधन का भी होने के कारण कुछ परतंत्रता का – सा अनुभव भी होता है | यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की मीन राशि में अष्टमभाव को देखता है, अतः जातक की आयु एवं पुरातत्व का लाभ होता है और वह प्रतिष्ठित व्यक्ति समझा जाता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे सहोदर एवं पराक्रम के भवन में अपने शत्रु शुक्र की तुला राशि पर स्थित नीच के सूर्य के प्रभाव से जातक को भाई बहनो के सुख में कमी तथा वैमनस्य मिलता है एवं पराक्रम में भी कुछ कमी आती है, परन्तु तृतीयभाव में बैठा हुआ क्रूर ग्रह अधिक प्रभावशाली होता है, इसलिए जातक बहुत हिम्मत वाला भी बना रहता है | यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से मंगल की मेष राशि में नवमभाव को देखता है, अतः जातक के भाग्य में वृद्धि होती है और वह धर्म में भी आस्था रखता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र, माता, भूमि, मकान एवं सुख के स्थान में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को माता, भूमि, मकान आदि का सुख प्राप्त होता है तथा शरीर आनंदित बना रहता है | यहाँ से सूर्य सातवीं शत्रुदृष्टि की शुक्र की वृषभ राशि में दशमभाव को देखता है, अतः जातक का पिता के साथ वैमनस्य रहता है तथा राज्य एवं व्यवसाय के क्षेत्र में अधिक प्रयत्न द्वारा कुछ सफलता प्राप्त होती है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण एवं विद्या- संतान के भवन में अपने मित्र गुरु की धनु राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को संतान, विद्या एवं बुद्धि की श्रेष्ठ शक्ति प्राप्त होती है | ऐसा व्यक्ति आत्मज्ञानी भी होता है, परन्तु उसके मस्तिष्क में उग्रता रहती है | यहाँ से सूर्य अपने सातवीं मित्रदृष्टि से बुध की मिथुन राशि में एकादशभाव को देखता है, अतः जातक को बुद्धि- बल द्वारा पर्याप्त लाभ होता है तथा आमदनी के कई मार्ग खुलते हैं | ऐसा जातक अहंकारी भी होता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे शत्रु एवं रोग के स्थान में अपने शत्रु शनि की मकर राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और कठिनाइयों तथा मुसीबतों की चिंता नहीं करता | उसे शारीरिक सौंदर्य में कमी, रोग तथा परतंत्रता का योग भी रहता है | यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से चन्द्रमा की कर्क राशि में द्वादशभाव को देखता है, अतः खर्च की अधिकता रहती है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ भी होता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने शत्रु शनि की कुम्भ राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को स्त्रीपक्ष से वैमनस्य रहता है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में कठिन परिश्रम के बाद सफलता प्राप्त होती है , परन्तु भोगादि के संबंध में जातक की आसक्ति रहती है | यहाँ से सूर्य सातवीं दृष्टि से अपनी ही सिंह राशि में प्रथमभाव को देखता है, अतः जातक शारीरिक शक्ति, प्रभाव एवं स्वाभिमान संपन्न होता है और अपने नाम को ऊँचा उठाने का प्रयत्न करता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें आयु एवं पुरातत्व के स्थान में अपने मित्र गुरु की मीन राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक आयु एवं पुरातत्व का लाभ शारीरिक शक्ति एवं कुछ कठिनाइयों के साथ प्राप्त करता है | साथ ही बाहरी स्थानों के संबंध से उसे शक्ति मिलती है | यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से बुध की कन्या राशि में द्वितीयभाव को देखता है, अतः जातक धन वृद्धि के लिए कठिन परिश्रम करता है और उसे धन तथा कुटुंब का सुख प्राप्त होता है | ऐसा जातक स्वाभाव का क्रोधी होता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण, भाग्य तथा धर्म के स्थान में अपने मित्र मंगल की मेष राशि पर स्थित उच्च के सूर्य के प्रभाव से जातक को भाग्य की प्रबल शक्ति प्राप्त होती है तथा धर्म के पक्ष में भी रूचि बनी रहती है | ऐसा जातक ईश्वर- विश्वासी, भाग्यवान तथा स्थूल शरीर वाला होता है | यहाँ से सूर्य सातवीं नीच दृष्टि से अपने शत्रु शुक्र की तुला राशि में तृतीयभाव को देखता है, अतः उसे भाई बहन के द्वारा असंतोष मिलता है और वह पराक्रम के संबंध में लापरवाह बना रहता है | ऐसा व्यक्ति कभी कभी छोटे- मोटे काम भी करता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र, राज्य तथा पिता के भवन में अपने शत्रु शुक्र की वृषभ राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक का पिता से वैमनस्य एवं राज्य के क्षेत्र से मान एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है और वह अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील रहने वाला होता है | यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से मंगल की वृश्चिक राशि में चतुर्थभाव को देखता है, अतः जातक को माता, भूमि एवं भवन का यथेष्ठ सुख प्राप्त होता है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें लाभ भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को आमदनी के श्रेष्ठ साधन उपलब्ध होते हैं | उसकी शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है, अतः आय के क्षेत्र में सफलता मिलती है | यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की धनु राशि में पंचमभाव को देखता है, अतः जातक को संतान एवं विद्या बुद्धि की यथेष्ठ शक्ति प्राप्त होती है | ऐसा व्यक्ति स्वार्थी होता है तथा उसकी बोली में भी कुछ उग्रता बनी रहती है |

जिस जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्यय स्थान में अपने मित्र चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक का शरीर दुर्बल बना रहता है | खर्च पर वह अपना प्रभाव रखता है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ उठाता है | ऐसा व्यक्ति भ्रमणशील भी होता है | यहाँ से सूर्य सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की मकर राशि में षष्ठभाव को देखता है, अतः जातक शत्रुपक्ष में प्रभाव रखता है और अनेक प्रकार की कठिनाइयों के बाद उन पर विजय भी पाता है |

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