षष्ठ भाव के स्वामी रोगेश अथवा षष्ठेश की विभिन्न भावों में स्थिति और फल

षष्ठभाव का स्वामी ‘ रोगेश’ अथवा ‘ षष्ठेश’

  1. षष्टभाव अर्थात रोग एवं शत्रु स्थान का स्वामी रोगेश अथवा षष्ठेश यदि लग्न अर्थात प्रथमभाव में बैठा हो, तो जातक स्वस्थ, बलवान, शत्रुजयी, स्वछंद प्रकृति का, अधिक बोलने वाला, धनी, कुटुम्बियों को कष्ट देने वाला तथा अनेक व्यक्तियों से अपेक्षा रखने वाला होता है।
  2. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि द्वितीयभाव में बैठा हो, तो जातक चतुर, रोगी, धन संचयी, प्रसिद्ध, अच्छे स्थान में रहने वाला, दुष्ट प्रकृति का तथा मित्रों के धन को नष्ट करने वाला होता है।
  3. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि तृतीयभाव में बैठा हो, तो जातक लोगों को कष्ट देने वाला, अपने परिजनों को मारने वाला तथा युद्ध एवं झगड़ों के मामले में स्वयं दुःख भोगने वाला होता है।
  4. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि चतुर्थभाव में बैठा हो, तो जातक अपने पिता से शत्रुता रखता है और उसका पिता चिर रोगी होता है। ऐसा व्यक्ति स्थिर संपत्ति प्राप्त करने वाला होता है।
  5. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि पंचमभाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो पिता पुत्र में शत्रुता रहती है तथा जातक की मृत्यु पुत्र के द्वारा होती है। परंतु यदि षष्ठेश शुभ ग्रह हो, तो पिता पुत्र में शत्रुता नहीं होती, परंतु ऐसा जातक दूसरों से द्वेष रखने वाला एवं कपटी स्वभाव का होता है।
  6. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि अपने ही घर षष्ठभाव में बैठा हो, तो जातक रोग तथा शत्रुओं से रहित होता है। वह कृपण, सुखी, धैर्यवान परन्तु खराब जगह में रहने वाला होता है।
  7. षष्ठभाव का स्वामी यदि सप्तमभाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो जातक की स्त्री दुष्ट, पति से विरोध रखने वाली तथा संताप देने वाली होती है। यदि षष्ठेश शुभ ग्रह हो, तो स्त्री दुष्टा तो नहीं होती, अपितु वह बंध्या अथवा नष्टगर्भा होती है।
  8. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि शनि हो और वह अष्टमभाव में बैठा हो, तो जातक की संग्रहणी रोग से, मंगल हो तो सर्प के काटने से, बुध हो तो विषदोष से, चन्द्रमा हो तो बालारिष्ट दोष से, सूर्य हो तो सिंह – व्याघ्र आदि से, गुरु हो तो कुबुद्धि से और शुक्र हो तो नेत्र – रोग से मृत्यु होती है।
  9. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि नवमभाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो जातक लंगड़ा, बंधू – विरोधी, क्रूर, शास्त्र – पुराणादि को न मानने वाला तथा भिक्षुक होता है।
  10. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि दशमभाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो जातक अपनी माता का शत्रु तथा दुष्ट स्वभाव वाला होता है।  यदि शुभ ग्रह हो, तो पिता का पालन करने वाला, परंतु अन्य परिवारीजनों का शत्रु होता है।
  11. षष्ठ्भाव का स्वामी षष्ठेश यदि एकादशभाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो जातक की मृत्यु शत्रु के द्वारा होती है। यदि शुभ ग्रह हो तो चोरों के द्वारा धन की हानि होती है तथा चतुष्पदों (जानवरों ) के द्वारा लाभ होता है।
  12. षष्ठभाव का स्वामी षष्ठेश यदि द्वादशभाव में बैठा हो, तो जातक को पशुओं से धन की हानि होती है। ऐसा व्यक्ति विदेश के आवागमन से धन प्राप्त करता है तथा भाग्यवादी होता है।
Dharmendar

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