मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले जातक के शरीर का रंग गेहुआं तथा चेहरा गोल होता है | वह स्त्रियों में आसक्त , नृत्य- संगीत- वाघ आदि का प्रेमी, हास्य प्रवीण, दूत- कर्म करने वाला, मधुर भाषी, विनम्र, शिल्पज्ञ, विषयी, चतुर, कवि, परोपकारी, सुखी, तीर्थयात्री, गणितज्ञ, ऐश्वर्यवान, बहु संतति एवं मित्रवान, सुशील, दानी, अनेक प्रकार के भोगों का उपयोग करने वाला, राजा के समीप रहने वाला तथा राजा से ही पीड़ित होने वाला तथा सुन्दर केशों वाला होता है |
मिथुन लग्न वाले व्यक्ति की आयु माध्यम होती है | वह अपनी प्रारंभिक अवस्था में सुखी, मध्यावस्था में दुखी तथा अंतिम अवस्था में पुनः सुखोपभोग करने वाला होता है | उसका भाग्योदय ३२ से ३५ वर्ष की आयु के बीच का होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक की शारीरिक सौंदर्य, स्वाभिमानी, मनोबल तथा सुख की प्राप्ति होती है | साथ ही पिता एवं राज्य द्वारा सहयोग, सुख एवं सम्मान प्राप्त होता है | यहाँ से गुरु सातवीं दृष्टि से सप्तमभाव को देखता है अतः स्त्री द्वारा भी सुख मिलता है | पांचवीं शत्रु- दृष्टि से पंचमभाव को देखने के कारण संतान के पक्ष में कुछ त्रुटिपूर्ण सफलता एवं विद्या- बुद्धि के क्षेत्र में कुछ विशेष सफलता प्राप्त होती है | नवीं शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखने से भाग्य तथा धर्म के क्षेत्र में भी कुछ त्रुटिपूर्ण सफलता मिलती है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दूसरे धन- कुटुंब के भवन में अपने मित्र चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित उच्च के गुरु के प्रभाव से जातक के धन तथा कुटुंब की वृद्धि होती है | यहाँ से गुरु पांचवीं मित्रदृष्टि से षष्ठ भाव को देखता है | अतः शत्रु पक्ष से प्रभाव एवं विजय की प्राप्ति होती है तथा मामा के पक्ष से सहयोग मिलता है | सातवीं नीचदृश्टि से अष्टमभाव को देखने के कारण आयु तथा पुरातत्व के क्षेत्र में कुछ कमी बनी रहती है | नवीं दृष्टि से स्वराशि में दशमभाव को देखने के कारण पिता तथा राज्य के द्वारा सहयोग, सुख एवं सम्मान प्राप्त होता है तथा व्यवसाय द्वारा धन की खूब वृद्धि होती है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
तीसरे पराक्रम एवं भाई- बहन के स्थान में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक के पराक्रम की वृद्धि होती है तथा भाई बहन का सुख प्राप्त होता है | यहाँ से गुरु पांचवीं दृष्टि से आपको धनु राशि में सप्तमभाव को देखता है , अतः सुन्दर, सुशिक्षिता एवं सुयोग्य पत्नी द्वारा सुख की प्राप्ति होती है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में बहुत सफलता मिलती है | नवीं मित्रदृष्टि से एकादशभाव को देखने से लाभ खूब होता है तथा सातवीं शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखने के कारण भाग्य तथा धर्म के पक्ष में कुछ असंतोष एवं कमी बनी रहती है और परिश्रम द्वारा धन लाभ होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
चौथे केंद्र माता तथा भूमि सुख भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को माता, भूमि, मकान आदि का सुख यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है तथा सुख की वृद्धि होती है | पांचवीं नीच दृष्टि से अष्टमभाव को देखने के कारण आयु तथा पुरातत्व के पक्ष में कुछ हानि एवं अशांति का सामना करना पड़ता है | सातवीं दृष्टि से अपनी राशि मीन में दशमभाव को देखने के कारण पिता तथा राज्य द्वारा पर्याप्त सहयोग, सफलता तथा यश की प्राप्ति होती है एवं व्यवसाय की उन्नति होती है | नवीं दृष्टि से द्वादशभाव को देखने के कारण खर्च अधिक होता है तथा बाहरी स्थानों से विशेष सम्बन्ध बना रहता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पांचवें त्रिकोण तथा विद्या, संतान के भवन में अपने शत्रु शुक्र की तुला राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को संतान के पक्ष में कुछ कमी, परन्तु विद्या- बुद्धि के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त होती है | पांचवीं शत्रु- दृष्टि से नवमभाव को देखने के कारण भाग्योन्नति में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है | सातवीं मित्रदृष्टि से एकादशभाव को देखने के कारण लाभ खूब होता है | नवीं मित्रदिष्टि से प्रथमभाव को देखने के कारण शारीरिक सौंदर्य, प्रभाव एवं स्वाभिमान की प्राप्ति होती है | संक्षेप में, ऐसा जातक बड़ा विद्वान, बुद्धिमान, दूरदर्शी, उन्नतिशील, वाणी की शक्ति का धनी, चतुर, सुखी तथा सफल होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
छठे शत्रु तथा रोग भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को शत्रु पक्ष में विजय प्राप्त होती है | साथी ही स्त्रीपक्ष में कुछ मतभेदों के साथ सफलता मिलती है | यहाँ से गुरु पांचवीं दृष्टि से अपनी मीन राशि में दशमभाव को देखता है, अतः उसे राज्य द्वारा सम्मान एवं उन्नति के अवसर मिलते हैं | सातवीं शत्रुदृष्टि से द्वादशभाव को देखने के कारण खर्च खूब रहता है तथा बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से लाभ मिलता है | नवीं उच्च दृष्टि से द्वितीयभाव को देखने के कारण परिश्रम के द्वारा धन की वृद्धि होती है तथा कुटुंब से सहयोग प्राप्त होता है | ऐसा जातक उन्नतिशील होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपनी ही धनु राशि में स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को स्त्री तथा व्यवसाय के पक्ष में बड़ी सफलता, सुख एवं प्रभाव की प्राप्ति होती है | साथ ही पिता तथा राज्य पक्ष से भी सहयोग, सम्मान एवं सुख मिलता है | अतः जातक को लाभ खूब होता है | यहाँ से जातक पांचवीं मित्रदृष्टि से एकादशभाव को देखता है, अतः जातक को लाभ खूब होता है | सातवीं मित्रदृष्टि से प्रथमभाव को देखने के कारण शारीरिक सौंदर्य तथा सम्मान की प्राप्ति भी होती है तथा नवीं मित्रदृष्टि से तृतीयभाव को देखने के कारण पराक्रम में वृद्धि होती है तथा भाई बहनो का सुख प्राप्त होता है | संक्षेप में, ऐसा जातक सुन्दर, धनी, सुखी, स्वाभिमानी तथा जीवन में सफलताएं पाने वाला होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
आठवें आयु तथा पुरातत्व के भवन में अपने शत्रु शनि की मकर राशि पर स्थित नीच के गुरु के प्रभाव से जातक को आयु तथा पुरातत्व के सम्बन्ध में कठिनाइयां उपस्थित होती हैं | साथ ही स्त्री, पिता तथा व्यवसाय के पक्ष में भी कष्ट का अनुभव होता है | यहाँ से गुरु पांचवीं दृष्टि से द्वादशभाव को देखता है , अतः खर्च अधिक रहता है तथा बाहरी स्थानों के कपटपूर्ण- संबंधों से ग्रहस्थी का संचालन करता है | सातवीं उच्च दृष्टि से द्वितीयभाव को देखने के कारण जातक धन वृद्धि के लिए प्रयतनशील रहता है तथा नवीं मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखने से माता, मकान, भूमि आदि का सुख प्राप्त होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
नवें त्रिकोण, भाग्य तथा धर्म के भवन में अपने शत्रु शनि की कुम्भ राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक कुछ कठिनाइयों के साथ भाग्योन्नति करता है तथा अरुचि पूर्वक धर्म का पालन करता है | साथ ही स्त्री तथा पिता के पक्ष पशु में भी असंतोष बना रहता है | यहाँ से गुरु के पांचवीं मित्रदृष्टि से प्रथमभाव को देखता है , अतः शारीरिक सौंदर्य एवं सम्मान की प्राप्ति होती है | सातवीं मित्रदृष्टि से तृतीयभाव को देखने से पराक्रम की वृद्धि होती है तथा भाई बहनो का सहयोग भी मिलता है नवीं शत्रुदृष्टि से पंचमभाव को देखने के कारण संतानपक्ष से कुछ असंतोष रहता है तथा विद्या- बुद्धि के क्षेत्र में कुशलता प्राप्त होती है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दसवें केंद्र, राज्य तथा पिता के स्थान में अपनी ही मीन राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को राज्य एवं पिता द्वारा सुख, सहयोग तथा सम्मान की प्राप्ति होती है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में भी सफलता मिलती है | पांचवीं उच्च दृष्टि से द्वितीयभाव को देखने के कारण जातक को धनसंचय की उत्तम शक्ति प्राप्त होती है | सातवीं मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखने के कारण माता, भूमि, मकान, संपत्ति आदि का पर्याप्त सुख प्राप्त होता है तथा नवीं मित्रदृष्टि से षष्ठभाव को देखने के कारण जातक शत्रु पक्ष पर प्रभावशाली बना रहता है तथा मामा द्वारा भी सहायता मिलती है | संक्षेप में, ऐसा जातक धनी, सुखी, यशस्वी तथा प्रभावशाली होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
ग्यारहवें लाभ भवन में अपने मित्र मंगल की मेष राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को व्यवसाय तथा पिता के द्वारा भी पर्याप्त लाभ प्राप्त होता है | यहाँ से गुरु पांचवीं मित्रदृष्टि को देखता है, अतः जातक के पराक्रम में विशेष वृद्धि होती है तथा भाई बहनो का सुख भी प्राप्त होता है | सातवीं शत्रुदृष्टि से पंचमभाव को देखने के कारण संतानपक्ष से कुछ असंतोष के साथ सफलता मिलती है तथा विद्या बुद्धि की खूब प्राप्ति होती है | नवीं दृष्टि से अपनी ही राशि में सप्तमभाव को देखने से स्त्री तथा व्यवसाय के पक्ष में विशेष सुख एवं लाभ प्राप्त होता है | संक्षेप में, ऐसा जातक धनी, सुखी, यशस्वी तथा सफलता प्राप्त करने वाला होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में गुरु की स्थिति हो, उसे गुरु का फलादेश निचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
बारहवें व्ययभाव में अपने शत्रु शुक्र की वृष राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक होता है तथा बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से सम्मान तथा लाभ प्राप्त होता है | इसके साथ ही जातक को स्त्री तथा पिता के सुख सम्बन्ध में भी कुछ कमी रहती है एवं व्यवसाय में भी हानि उठानी पड़ती है | यहाँ से गुरु पांचवीं मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखता है, अतः माता तथा घरेलू सुख, भूमि, मकान आदि की शक्ति प्राप्त होती है | सातवीं मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखने से शत्रुपक्ष से प्रभाव तथा विजय मिलती है एवं नवीं शत्रुदृष्टि से अष्टमभाव को देखने के कारण आयु तथा पुरातत्व के सम्बन्ध में कुछ हानि उठानी पड़ती है | ऐसे जातक को आयु के सम्बन्ध में खतरों का भी सामना करना पड़ता है |