मिथुन लग्न वाले व्यक्ति की आयु माध्यम होती है | वह अपनी प्रारंभिक अवस्था में सुखी, मध्यावस्था में दुखी तथा अंतिम अवस्था में पुनः सुखोपभोग करने वाला होता है | उसका भाग्योदय ३२ से ३५ वर्ष की आयु के बीच का होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित उच्च के राहु के प्रभाव से जातक का शरीर लंबा तथा प्रभावशाली होता है | वह विवेकी, गुप्त युक्ति संपन्न तथा प्रतिष्ठा पाने वाला होता है | उसके मन में बड़ी हिम्मत बनी रहती है तथा वह अपनी उन्नति के लिए कष्टसाध्य कर्मों को करता तथा गुप्त युक्तियों का आश्रय लेता है | ऐसा जातक लंबी- चौड़ी बातें बनाने वाला, स्वार्थी तथा अपने युक्ति बल पर धन एवं सम्मान प्राप्त करने वाला होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दूसरे धन एवं कुटुंब के भवन में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को धन- संपत्ति एवं कुटुंब के मामले में बहुत हानि उठानी पड़ती है तथा कष्टों का सामना करना पड़ता है | वह धन- प्राप्ति के लिए गुप्त युक्तियों का आश्रय लेता है तथा कठोर परिश्रम करता है, फिर भी उसे कठिनाइयां निरंतर परेशान करती रहती हैं | ऐसे जातक को अपने जीवन में बहुत समय बाद धन का अल्प सुख प्राप्त होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
तीसरे पराक्रम तथा बंधु स्थान में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक के पराक्रम में तो वृद्धि होती है, परन्तु भाई- बहन के सुख- संबंध में कमी एवं कष्ट का सामना करना पड़ता है | वह परिश्रम, कष्ट एवं हिम्मत के साथ अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करता है | वह धैर्यवान तथा गुप्त युक्तियों से संपन्न , बहादुर स्वभाव का भी होता है, परन्तु कभी कभी उसे बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है, अतः वह अपनी पूर्ण उन्नति नहीं कर पाता |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
चौथे केंद्र एवं माता के सुख भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को माता के सुख में कुछ कमी प्राप्त होती है तथा भूमि संपत्ति, मकान एवं घरेलू सुख में भी कुछ असंतोष एवं झगडे- टंटे का योग बना रहता है | ऐसा जातक गुप्त युक्तियों के बल पर सुख की प्राप्ति करता है और बहुत कठिनाइयों के बाद सुख के साधन प्राप्त करने में सफल होता है | ऐसे जातक को घरेलू सुख- शांति में कमी का अनुभव होता रहता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पांचवें त्रिकोण, विद्या, बुद्धि एवं संतान के भवन में अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को विद्या एवं बुद्धि के क्षेत्र में अनेक युक्तियों के बाद सफलता प्राप्त होती है, परन्तु संतानपक्ष से कुछ कष्ट बना रहता है | ऐसा जातक बहुत चतुर ; गुप्त युक्तियों वाला तथा बुद्धिमान होता है | वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए असत्य भाषण करने में भी संकोच नहीं करता | उसके मस्तिष्क में अनेक प्रकार की चिंताएं बनी रहती हैं, परन्तु उसकी बात- चीत बड़ी प्रभावोत्पादक होती है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
छठे शत्रु तथा रोग भवन में अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक अपने शत्रु पक्ष में अत्यंत प्रभाव बनाए रहता है | वह शत्रुओं द्वारा परेशानियों का अनुभव करने पर भी उन पर विजय प्राप्त करता है | ऐसा व्यक्ति गुप्त युक्ति, चातुर्य, धैर्य, साहस, हिम्मत तथा वीरता की प्रतिमूर्ति होता है | वह अपनी कमजोरियों को प्रकट नहीं होने देता तथा प्रत्येक झगडे- झंझट से लाभ एवं सफलता प्राप्त करता है | परन्तु वह अपने मामा के पक्ष को कुछ हानिकारक सिद्ध होता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित नीच के राहु के प्रभाव से जातक को स्त्री के द्वारा विशेष कष्ट प्राप्त होता है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में भी बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | उसे अपनी ग्रहस्थी का संचालन करने के लिए भी हर समय चिंतित एवं परेशान रहना पड़ता है तथा मूत्रेंद्रिय में भी कोई विकार होता है | ऐसा व्यक्ति गुप्त युक्तियों, असत्य भाषण एवं अनुचित तरीकों से भी अपना स्वयं को परतंत्र तथा परेशान सा भी अनुभव करता रहता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
आठवें आयु तथा पुरातत्व के भवन में अपने मित्र शनि की मकर राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को आयु एवं पुरातत्व के सम्बन्ध में कठिनाइयों, मुसीबतों, निराशाओं का सामना करना पड़ता है | उसके पेट के निचले भाग में कोई विकार भी होता है | वह गुप्त युक्तियों एवं कठिन परिश्रम द्वारा सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता रहता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
नवें त्रिकोण , भाग्य तथा धर्म भवन में अपने मित्र शनि की कुम्भ राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को भाग्योन्नति के क्षेत्र में अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | वह अत्यंत परिश्रम तथा गुप्त युक्तियों द्वारा अपने भाग्य की वृद्धि करता है, उसे पूर्ण सुख तथा सम्मान प्राप्त नहीं होता | इसी प्रकार उसका धर्म पालन भी दिखावटी होता है | क्रूर ग्रह की राशि पर क्रूर ग्रह की उपस्थिति के कारण जातक कठिन परिश्रम तथा गुप्त युक्तियों के द्वारा बाद में थोड़ी सी सफलता अर्जित कर लेता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दसवें केंद्र, राज्य तथा पिता के भवन में अपने शत्रु गुरु की मीन राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को पिता, राज्य तथा व्यवसाय के सुख- सम्बन्ध में कठिनाइयों तथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है तथा गुप्त युक्तियों एवं कठिन परिश्रम के द्वारा सफलता मिलती है, परन्तु कभी कभी व्यवसाय तथा प्रतिष्ठा के ऊपर घोर संकट भी घिर आते हैं | ऐसा व्यक्ति सामानयतः आदर्शवादी होता है और बहुत कुछ संकट उठा चुकने के बाद अंत में यश, प्रतिष्ठा तथा भाग्य के क्षेत्र में थोड़ी सफलता पा लेता है |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
ग्यारहवें लाभ भवन में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक बड़ी गुप्त युक्तियों से काम लेकर अपने उद्देशय में सफलता प्राप्त करता है | यद्यपि उसे कभी कभी घोर संकटों का सामना भी करना पड़ता है, परन्तु अंत में उसे विशेष सफलता भी प्राप्त होती है | ऐसे व्यक्ति थोड़े लाभ से संतुष्ट नहीं होते , अतः अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए निरंतर नई नई योजनाएं बनाते और उन पर अमल करते रहते हैं |
जिस जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में राहु की स्थिति हो, उसे राहु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
बारहवें व्यय भवन में अपने मित्र शुक्र की वृषभ राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक होता है और उस सम्बन्ध में उसे कभी कभी बड़ी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है | वह चातुर्य के बल पर खर्च का संचालन करता है | उसे बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से परिश्रम होता है और बाहरी लोगों की दृष्टि में प्रभावशाली बना रहता है |
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