मेष लग्न की कुंडली में शुक्र का फल
मेष लग्न का संक्षिप्त फलादेश
मेष लग्न में जन्म लेने वाला जातक दुबले – पतले शरीर वाला, अधिक बोलने वाला, उग्र स्वभाव वाला, रजोगुणी, अहंकारी, चंचल, बुद्धिमान, धर्मात्मा, अत्यंत चतुर, अल्पसंततिवान, अधिक पित्त वाला, सब प्रकार के भोजन करने वाला, उदार, कुल दीपक तथा स्त्रियों से अल्प स्नेह अथवा द्वेष रखने वाला (जातक यदि स्त्री हो, तो पुरुषों से कम स्नेह अथवा द्वेष रखने वाली ) होता है | इसके शरीर का रंग कुछ लालिमा लिए होता है | मेष लग्न में जन्म लेने वाले जातक को अपनी आयु के छठे, आठवें,पन्द्रहवें, इक्कीसवें, छतीसवें, चालीसवें, पैंतालीसवें,छप्पनवें तथा तिरेसठवें वर्ष में शारीरिक कष्ट एवं धन- हानि का सामना करना पड़ता है | मेष लग्न में जन्म लेने वाले जातक को अपनी आयु के सोलहवें , बीसवें, अठाईसवें , चौतीसवें, इकतालीसवें , अड़तासलीसवें तथा इक्यानवे वर्ष में धन की प्राप्ति , वाहन सुख , भाग्य वृद्धि आदि विविद प्रकार के लाभ एवं आनंद प्राप्त होते हैं |
मेष लग्न में शुक्र का फल
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में मेष का शुक्र , अपने शत्रु मंगल की राशि पर स्थित हो, तो उसके प्रभाव से जातक को सुन्दर शरीर, सम्मान, सफलता एवं चातुर्य्य आदि का लाभ होता है | इस स्थान से शुक्र सातवीं दृष्टि से स्त्री एवं व्यवसाय भवन को स्वक्षेत्र में देखता है , अतः जातक को स्त्री एवं व्यवसाय के क्षेत्र में भी सफलता प्राप्त होती है, परन्तु शुक्र के धनेश होने के कारण जातक को ग्रेह्स्थी तथा व्यवसाय कार्यों के संचालन में कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है | संक्षेप में ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक सुखी, सुन्दर, यशस्वी एवं भाग्यशाली होती है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दूसरे धन भवन में स्वराशि स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक धनवान , कुटुंबवान तथा सौभाग्यशाली होता है, परन्तु द्वितीयभाव बंधन का भी होता है, अतः जातक को स्त्री एवं व्यवसाय से सम्बंधित कार्यों में कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है | इस स्थान से शुक्र सातवीं दृष्टि से अपने सामान्य शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि को देखता है , अतः जातक को आयु एवं पुरातत्व के सम्बन्ध में भी अपनी योग्यता के कारण सफलता एवं लाभ की प्राप्ति होती है | संक्षेप में, ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक सुखी तथा ऐशो आराम का जीवन व्यतीत करता है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
तृतीय पराक्रम स्थान में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक के पराक्रम एवं चातुर्य्य में वृद्धि होती है, जिसके कारण उसे कुटुंब तथा धन का श्रेष्ठ लाभ होता है, परन्तु स्त्री एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सुख होते हुए भी कुछ कठिनाइयां आती रहती हैं | इस स्थान से शुक्र सातवीं दृष्टि से भाग्य तथा धर्म के नवें भाव को देखता है , अतः जातक भाग्यवान होने के साथ ही धर्म का पालन भी करता है | संक्षेप में ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक धनी, धर्मात्मा तथा भाग्यशाली होता है और उसे कुटुंब , स्त्री तथा व्यवसायिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती रहती है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
चौथे केंद्र माता तथा सुख के चतुर्थभाव में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को धन एवं कुटुंब का सुख प्राप्त होता है, परन्तु माता एवं भूमि के सुख में कुछ कमी बनी रहती है | इसी प्रकार स्त्री के सम्बन्ध में कुछ कमी के साथ सुख मिलता है | इस स्थान से शुक्र सातवीं मित्रदृष्टि से दशमभाव को देखता है , अतः जातक को राज्य एवं पिता के क्षेत्र में प्रतिष्ठा एवं उन्नत्ति की प्राप्ति होती है | साथ ही पैतृक धन एवं व्यावसायिक सफलता भी मिलती है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पांचवें त्रिकोण , विद्या एवं संतान के भाव में अपने शत्रु सूर्य की राशि में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को विद्या एवं संतान के पक्ष में सफलता प्राप्त होती है , परन्तु यह स्थान बंधन का भी है , अतः कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है | इस स्थान से शुक्र सातवीं मित्रदृष्टि से लाभ स्थान को अपने मित्र शनि की कुम्भ राशि में देख रहा है, अतः जातक को आमदनी का भी श्रेष्ठ योग प्राप्त होता है | अतः जातक को आमदनी का भी श्रेष्ठ योग प्राप्त होता है | संक्षेप में ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक भाग्यशाली विद्यावान , संतानवान तथा लाभ उठाने वाला होता है , परन्तु संतान एवं स्त्री के पक्ष में सामान्य कठिनाइयां आती रहती हैं |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
छठे शत्रु स्थान में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित नीच के शुक्र के प्रभाव से जातक को शत्रु पक्ष में गुप्त चतुराई से काम लेना पड़ता है एवं कठिनाइयां उपस्थित होती रहती हैं | इस स्थान से शुक्र सातवीं दृष्टि से व्ययभाव को अपने शत्रु गुरु की मीन राशि में देखता है, अतः खर्च की अधिकता बनी रहती है तथा बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से शक्ति प्राप्त होती है | संक्षेप में , ऐसी ग्रह स्थिति वाले जातक को अपनी स्त्री , कुटुंब तथा व्यवसाय के सम्बन्ध में परेशानियों का सामना करना पड़ता है तथा प्रत्येक क्षेत्र में बुद्धि , बल का अधिक प्रयोग करना होता है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
सातवें केंद्र , स्त्री तथा व्यवसाय के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करता है | इस स्थान से शुक्र की सातवीं दृष्टि अपने सामान्य शत्रु मंगल की मेष राशि वाले शरीर स्थान में पड़ती है, अतः जातक को शारीरिक सौंदर्य , मान प्रतिष्ठा तथा कार्य कुशलता की प्रगति भी होती है | संक्षेप में ऐसी ग्रह स्थिती वाला जातक होशियार , धनवान, सुन्दर, सुखी तथा कौटुम्बिक शक्ति से संपन्न होता है , परन्तु धन स्थान का स्वामी बंधन का कार्य भी करता है , अतः उसे व्यवसाय एवं स्त्री के पक्ष में कुछ कठिनाइयां भी उठानी पड़ेंगी |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्ठमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
आठवें मृत्यु तथा आयु भवन में अपने सामान्य शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को स्त्री तथा व्यवसाय के पक्ष में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | साथ ही धन की भी कमी बनी रहती है, परन्तु उसे पुरातत्व एवं आयु की शक्ति विशेष रूप से प्राप्त होती है | इस स्थान से शुक्र अपनी सातवीं दृष्टि से धन एवं कुटुंब के द्वितीयभाव को अपनी राशि में देखता है, अतः कठिन परिश्रम के साथ जातक के धन एवं कुटुंब की वृद्धि होती है | ऐसा जातक अपने परिश्रम एवं चतुराई से प्रतिष्ठा भी प्राप्त करता है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
नवें त्रिकोण तथा भाग्य भवन में अपने सामान्य शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक बहुत भाग्यवान तथा चतुर होता है और उसे ग्रेह्स्थी , स्त्री तथा कुटुंब का भी श्रेष्ठ सुख प्राप्त होता है | इस स्थान से शुक्र सातवीं मित्रदृष्टि से तीसरे पराक्रम एवं सहोदर स्थान को अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में देखता है, अतः जातक को पराक्रम एवं भाई बहन के श्रेष्ठ सुख का भी लाभ होता है | संक्षेप में ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक सुखी, धनी , धर्मात्मा, पराक्रमी तथा भाई बहन के सुख से संपन्न होता है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दसवें केतु तथा पिता एवं राज्य स्थान में अपने मित्र शनि की मकर राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को अपने पिता एवं राज्य के सम्बन्ध से विशेष लाभ प्राप्त होता है | इस स्थान से शुक्र की सातवीं दृष्टि अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि में चौथे माता एवं सुख के भवन में पड़ती है, अतः जातक को माता एवं भूमि, मकान आदि का भी सुख प्राप्त होगा | संक्षेप में ऐसी स्थिति वाला जातक धनी , सुखी, भू – सम्पत्तिवान , यशस्वी, माता, पिता एवं स्त्री का सुख प्राप्त करने वाला अत्यंत चतुर होता है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
ग्यारहवें लाभ स्थान में अपने मित्र शनि की कुम्भ राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक बड़ी चतुराई के साथ धन का सुख लाभ प्राप्त करता है और धनी होता है | उसे अपनी स्त्री एवं व्ययसाय से भी सुख तथा लाभ की प्राप्ति होती है | इस स्थान से शुक्र अपनी सातवीं दृष्टि से शत्रु सूर्य की सिंह राशि में पंचम भवन में देखता है , अतः जातक को विद्या , बुद्धि तथा संतान के क्षेत्र में बड़ी बुद्धिमानी एवं चतुराई के साथ सफलता मिलती है | संक्षेप में ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक धनी, सुखी, बुद्धिमान चतुर तथा स्वार्थी होता है |
जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
बारहवें व्यय स्थानों में अपने सामान्य शत्रु गुरु की मीन राशि पर उच्च के शुक्र के प्रभाव से जातक बहुत अधिक खर्चीला होता है तथा बाहरी सम्बन्धो द्वारा बड़ी चतुराई से धन तथा व्यवसाय की शक्ति प्राप्त करता है | इस स्थान से शुक्र सातवीं नीचदृश्टि से अपने मित्र बुध की कन्या राशि वाले छठे शत्रु भवन को देखता है , अतः शत्रु पक्ष में भेद तथा गुप्त युक्ति द्वारा कुछ कमजोरी के साथ काम निकालने की शक्ति प्राप्त होती है | संक्षेप में ऐसा जातक सामान्य तथा संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करता है |