Mahalaxmi Vrat Katha: महालक्ष्मी व्रत के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, बनी रहेगी मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि

Mahalaxmi Vrat Katha महालक्ष्मी व्रत की शुरूआत राधा अष्टमी से शुरू होता है और 16वें दिन इस व्रत का समापन किया जाता है। इस दिन महालक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करने से भक्तों पर मां की कृपा दृष्टि बनी रहती है।

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Mahalaxmi Vrat Katha: महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के साथ शुरू हो जाता है। इस दिन राधारानी के जन्मदिन के रूप में राधा अष्टमी का पर्व भी मनाया जाता है।  आज के दिन विधिपूर्वक और श्रद्धा से महालक्ष्मी व्रत रखा जाता है। इससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं। पूजा-अर्चना के साथ ही इस दिन महालक्ष्मी व्रत कथा का भी पाठ करना चाहिए।

महालक्ष्मी देवी धन और समृद्धि की देवी हैं। इसलिए, धनी और समृद्ध जीवन की कामना करने वाले भक्तों द्वारा लगातार सोलह दिनों तक उनकी पूजा की जाती है। इस व्रत से जुड़ी एक किंवदंती के अनुसार, पांडव राजा युधिष्ठिर ने सोचा कि चौसर के खेल में दुर्योधन से हारने के बाद वह अपनी सारी खोई हुई संपत्ति कैसे वापस पा सकते हैं। उनकी शंकाओं को दूर करने के लिए, भगवान कृष्ण ने उन्हें लगातार सोलह दिनों तक महालक्ष्मी व्रत का पालन करने के लिए कहा।

 

                                 पहली कथा

                                                                             ॥ प्रारंभ॥

प्राचीन समय में एक बार एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रूप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिए और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिए कहा। ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की।

यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मीजी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया, जिसमें श्री हरि ने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है जो यहां आकर उपले थापती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना और वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है। देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा। यह कहकर श्री विष्णु चले गए।

अगले दिन वह सुबह चार बजे ही मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गईं कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है।

लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो। 16 दिन तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अघ्र्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। उस दिन से यह व्रत इस दिन विधि-विधान से करने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है।

                                                                          ॥ अंत ॥

                                 दूसरी कथा

                                                                          ॥ प्रारंभ॥

एक बार महालक्ष्मी का त्योहार आया। हस्तिनापुर में गांधारी ने नगर की सभी स्त्रियों को पूजा का निमंत्रण दिया, परन्तु कुंती से नहीं कहा। गांधारी के 100 पुत्रों ने बहुत सी मिट्टी लाकर एक हाथी बनाया और उसे खूब सजाकर महल में बीचों बीच स्थापित किया।

सभी स्त्रियां पूजा के थाल ले लेकर गांधारी के महल में जाने लगीं। इस पर कुंती बड़ी उदास हो गईं, जब पांडवों ने कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि मैं किसकी पूजा करूं? अर्जुन ने कहा मां! तुम पूजा की तैयारी करो मैं जीवित हाथी लाता हूं।अर्जुन इन्द्र के यहां गए और अपनी माता के पूजन हेतु वह ऐरावत को ले आए।

माता ने सप्रेम पूजन किया। सभी ने सुना कि कुती के यहां तो स्वयं इंद्र का ऐरावत हाथी आया है तो सभी उनके महल की ओर दौड़ पड़े और सभी ने पूजन किया। इस व्रत पर सोलह बोल की कहानी सोलह बार कही जाती है और चावल या गेहूं अर्पित किए जाते हैं।

                                                                           ॥ अंत ॥

इस विधि से करें पूजा (Mahalaxmi Puja Vidhi)

महालक्ष्मी व्रत के आखिरी दिन सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत होने के बाद पूजा घर की अच्छे से साफ-सफाई करें। इसके बाद माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। साथ ही पूजा स्थल पर सोने-चांदी के सिक्के भी रखें। महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत में 16 गांठों वाला धागा बांधने का विधान है

ऐसे में व्रत के आखिरी दिन शाम के समय पूजा के लिए सबसे अपने हाथ में वहीं 16 गांठों वाला लाल धागा बांधें। इसके बाद माता महालक्ष्मी के आगे 16 देसी घी के दीपक जलायें और विधिवत रूप से मां लक्ष्मी की पूजा करें। व्रत के अगले दिन 16 गांठों वाले धागे को अपनी तिजोरी में रखें। इस धागे को अपने पास रखने से आपके घर में धन-धान्य कमी नहीं होती।

महालक्ष्मी पूजा के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि जो भी चीज आप अर्पित कर रहे हैं हर चीज सोलह की गिनती में होनी चाहिए। जैसे 16 लौंग, 16 इलायची या 16 श्रृंगार की सामग्री आदि। आप माता लक्ष्मी को कुंकुम, बताशा, शंख, कमलगट्टे, मखाना, चावल और फूल अर्पित कर सकते हैं।

इस मंत्र का करें जाप

महालक्ष्मी पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप जरूर करें। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति के घर में वास करती हैं। ये रहा महालक्ष्मी व्रत का मंत्र –

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।

इन बातों का रखें ध्यान

देवी मां को कभी भी हरसिंगार का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए। महालक्ष्मी की पूजा में हरसिंगार के फूलों का प्रयोग करना वर्जित माना जाता है। माता लक्ष्मी को सफेद मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पूजा के दौरान लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।

इस मंत्र का करें जाप

महालक्ष्मी पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप जरूर करें। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति के घर में वास करती हैं। ये रहा महालक्ष्मी व्रत का मंत्र –

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।

इन बातों का रखें ध्यान

देवी मां को कभी भी हरसिंगार का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए। महालक्ष्मी की पूजा में हरसिंगार के फूलों का प्रयोग करना वर्जित माना जाता है। माता लक्ष्मी को सफेद मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पूजा के दौरान लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।

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