कर्क लग्न में शनि का फल
कर्क लग्न का संक्षिप्त फलादेश
कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातक का शरीर गौर वर्ण होता है। वह पित्त प्रकृति वाला, जल क्रीड़ा का प्रेमी, मिष्ठान्नभोजी, भले लोगों से स्नेह करने वाला, उदार, विनम्र, बुद्धिमान, पवित्र, श्माशील, धर्मात्मा,बड़ा ढीठ, कन्या- संततिवान, व्यवसायी, मित्रद्रोही, धनी, व्यसनी, शत्रुओं से पीड़ित, स्वभाव से कुटिल, कभी कभी विपरीत – बुद्धि का परिचय देने वाला, अपने जन्म-स्थान को छोड़कर अन्य स्थान में निवास करने वाला और पतले, परन्तु शक्तिशाली शरीर वाला होता है।
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पहले केंद्र एवं शरीर स्थान में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित अष्टमेश शनि के प्रभाव से जातक के शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी आती है तथा शरीर में कुछ रोग तथा परेशानी भी बनी रहती है | यहाँ से शनि तीसरी मित्रदृष्टि से तृतीयभाव को देखता है, अतः जातक के भाई बहन का त्रुटिपूर्ण सुख प्राप्त होता है, परन्तु पराक्रम में वृद्धि होती है | सातवीं दृष्टि से सप्तमभाव के स्वक्षेत्र में देखने से स्त्री की शक्ति तो मिलेगी, परन्तु उससे कुछ परेशानी भी रहेगी तथा व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी | दसवीं नीचदृश्टि से दशमभाव को देखने से पिता तथा राज्य के क्षेत्र में सामान्य सफलता एवं सम्मान का लाभ रहेगा |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दूसरे धन कुटुंब के भवन में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक को धन तथा कुटुंब के क्षेत्र में हानि उठानी पड़ती है | तीसरी उच्च दृष्टि से चतुर्थभाव को देखने से माता तथा भूमि भवन का सुख मिलता है | सातवीं दृष्टि से स्वर राशि में अष्टमभाव को देखने से आयु की वृद्धि होती है तथा पुरातत्व का लाभ होता है | दसवीं मित्रदृष्टि से एकादशभाव को देखने से परिश्रम द्वारा धन का लाभ होता है | संक्षेप में ऐसा जातक अमीरी ढंग का जीवन व्यतीत करता है, परन्तु धन की कमी बनी रहती है तथा पारिवारिक सुख में भी न्यूनता रहती है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
तीसरे भाई एवं पराक्रम के भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक के पुरुषार्थ में तो वृद्धि होती है, परन्तु भाई बहन के द्वारा कुछ परेशानी मिलती है | यहाँ से तीसरी शत्रुदृष्टि से शनि पंचमभाव को देखता है, अतः संतान द्वारा कष्ट एवं विद्या बुद्धि के क्षेत्र में कठिनाई एवं कमी रहती है | सातवीं मित्रदृष्टि से नवमभाव को देखने से भाग्य के सम्बन्ध में परेशानी एवं धर्म के क्षेत्र में अरुचि रहती है | दसवीं मित्रदृष्टि से द्वादशभाव को देखने से खर्च अधिक रहता है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से लाभ मिलता है | ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक कुछ क्रोधी स्वभाव का भी होता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
चौथे केंद्र माता भूमि एवं सुख के भवन में अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक को माता के सुख में कुछ परेशानी के साथ सुख एवं भूमि तथा मकान के पक्ष में विशेष सफलता प्राप्त होती है | यहाँ से शनि तीसरी शत्रुदृष्टि से षष्ठभाव को देखता है, अतः शत्रुपक्ष में प्रभाव रहता है | सातवीं नीचदृश्टि से दशमभाव को देखने से पिता, राज्य तथा व्यवसाय के क्षेत्र में कठिनाइयां आती हैं तथा दसवीं शत्रुदृष्टि से प्रथमभाव को देखने से शरीर में परेशानी रहती है तथा घरेलू सुख के साधनों की प्राप्ति के पक्ष में आलस्य बना रहता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पांचवें त्रिकोण, विद्या, बुद्धि तथा संतान के भाव में अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक संतान एवं विद्या- बुद्धि के पक्ष से परेशानी एवं चिंता का योग प्राप्त करता है | यहाँ से शनि तीसरी दृष्टि से सप्तमभाव को स्वराशि में देखता है, अतः स्त्री बुद्धिमान मिलती है, परन्तु उसके कारण भी थोड़ा बहुत कष्ट बना रहता है | व्यवसाय के क्षेत्र में बुद्धि के योग द्वारा सफलता मिलती है | सातवीं मित्रदृष्टि से एकादशभाव को देखने से आमदनी अच्छी रहती है तथा दसवीं शत्रुदृष्टि से द्वितीयभाव को देखने से धन- संचय में कमी बनी रहती है तथा कुटुंब द्वारा भी कुछ परेशानी एवं चिंताओं का अनुभव होता रहता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
छठे शत्रु भवन में अपने शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक शत्रुपक्ष में प्रभावशाली बना रहता है, परन्तु स्त्री तथा व्यवसाय के क्षेत्र में उसे कुछ परेशानियों के बाद सफलता मिलती है | यहाँ से शनि तीसरी दृष्टि से स्वराशि में अष्टमभाव को देखता है, अतः आयु की शक्ति बढ़ती है तथा पुरातत्व का भी कुछ कठिनाइयों के साथ लाभ होता है | सातवीं मित्रदृष्टि से द्वादशभाव को देखने से खर्च अधिक रहता है तथा बाहरी स्थानों से लाभ मिलता है | दसवीं मित्रदृष्टि से तृतीयभाव को देखने से पराक्रम में वृद्धि होती है, परन्तु भाई बहन के संबंध में वेमन्सययुक्त सफलता मिलती है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में स्वराशि मकर स्थित शनि के प्रभाव से जातक को स्त्री एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता मिलती है तथा भोगादि के सुख भी खूब प्राप्त होते हैं | यहाँ से शनि तीसरी शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखता है, अतः भाग्य एवं धर्म के क्षेत्र में कुछ कमी बनी रहती है | सातवीं शत्रुदृष्टि से प्रथमभाव को देखने से शारीरिक सौंदर्य एवं स्वास्थ्य में त्रुटि रहती है तथा दसवीं उच्च एवं मित्रदृष्टि से चतुर्थभाव को देखने से माता, भूमि, मकान तथा घरेलू सुख में वृद्धि होती है | संक्षेप में, ऐसा जातक कठिनाइयों के साथ उन्नति प्राप्त करता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
आठवें आयु एवं पुरातत्व के स्थान में अपनी ही कुम्भ राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक की आयु में वृद्धि होती है तथा पुरातत्व का लाभ होता है , परन्तु स्त्री एवं व्यवसाय के पक्ष में कुछ परेशानी रहती है तथा बाहरी स्थानों के संबंध से शक्ति मिलती है | यहाँ से शनि तीसरी नीचदृश्टि से दशमभाव को देखता है, अतः जातक को पिता, राज्य एवं व्यवसाय के पक्ष में परेशानी का अनुभव होता है | सातवीं शत्रुदृष्टि से द्वितीयभाव को देखने से धन संचय की शक्ति में कमी आती है तथा कौटुम्बिक सुख में भी त्रुटि रहती है | दसवीं शत्रुदृष्टि से पंचमभाव को देखने से संतान, विद्या तथा बुद्धि के क्षेत्र में भी चिंता एवं कठिनाइयों का अनुभव होता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
नवें त्रिकोण, भाग्य तथा धर्म के भवन में अपने शत्रु गुरु की राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक को भाग्योन्नति एवं धर्म के क्षेत्र में कुछ कठिनाइयां बनी रहती है , परन्तु आयु की वृद्धि होती है, पुरातत्व का साधारण लाभ होता है तथा स्त्री एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सुख मिलता है | यहाँ से शनि तीसरी मित्रदृष्टि से एकादशभाव को देखता है, अतः लाभ अच्छा रहता है | सातवीं मित्रदृष्टि तृतीयभाव को देखने से पराक्रम की वृद्धि होती है, परन्तु शनि के अष्टमेश होने से भाई बहन के सुख में कुछ कमी रहती है | दसवीं शत्रुदृष्टि से षष्ठभाव को देखने से शत्रु पक्ष में कुछ कठिनाइयों के बाद प्रभाव स्थापित होता है | आंतरिक रूप से कुछ कमजोर रहने पर भी प्रकट में ऐसा जातक बहुत भाग्यशाली समझा जाता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दसवें केंद्र, राज्य एवं पिता के भवन में अपने शत्रु मंगल की राशि पर स्थित नीच के प्रभाव से जातक को पिता, राज्य एवं व्यवसाय के क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ता है | साथ ही आयु एवं पुरातत्व की भी कुछ हानि होती है | यहाँ से शनि तीसरी मित्रदृष्टि से द्वादशभाव को देखता है, अतः खर्च अधिक रहता है तथा बाहरी स्थानों से लाभ मिलता है | सातवीं उच्च दृष्टि से चतुर्थभाव को देखने से माता, भूमि, मकान आदि का सुख मिलता है तथा दसवीं दृष्टि से स्वराशि में सप्तमभाव को देखने से स्त्री तथा दैनिक रोजगार की अच्छी शक्ति मिलती है | ऐसा जातक कुछ कमजोरियों के रहते हुए भी अपने सब कार्यों का ठीक से संचालन करता है तथा सुखी एवं धनी प्रतीत होता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
ग्यारहवें लाभ भवन में अपने मित्र शुक्र की वृषभ राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक की आमदनी अच्छी रहती है तथा स्त्री एवं रोजगार का भी सुख मिलता है | यहाँ से शनि तीसरी शत्रुदृष्टि से प्रथमभाव को देखता है, अतः शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी रहती है | सातवीं शत्रुदृष्टि से पंचमभाव को देखने से विद्या बुद्धि तथा संतान के पक्ष से कुछ कष्ट रहता है तथा दसवीं दृष्टि से स्वराशि में अष्टमभाव को देखने से आयु की शक्ति बढ़ती है तथा पुरातत्व का लाभ होता है | ऐसा जातक अधिक पढ़- लिख नहीं पता, परन्तु अपनी चतुराई, प्रपंच एवं परिश्रम द्वारा अपना तथा अपने परिवार का निर्वाह करता रहता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में शनि की स्थिति हो, उसे शनि का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
बारहवें व्यय स्थान में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक रहता है | तथा बाहरी स्थानों के संबंध से सफलता मिलती है | साथ ही स्त्री, व्यवसाय, आयु तथा पुरातत्व की शक्ति में हानि होती है | यहाँ से तीसरी शत्रुदृष्टि से द्वितीयभाव को देखने के कारण धन तथा कुटुंब की और से चिंताएं बनी रहती है | सातवीं शत्रुदृष्टि के षष्ठभाव को देखने से शत्रु पक्ष से झंझट प्राप्त होती है, परन्तु प्रभाव बना रहता है, दसवीं शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखने से भाग्य एवं धर्मपालन में कठिनाई बनी रहती है | परन्तु परेशानियों के बावजूद भी ऐसा जातक शानदार जीवन बिताता है |