कर्क लग्न में केतु का फल
कर्क लग्न का संक्षिप्त फलादेश
कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातक का शरीर गौर वर्ण होता है। वह पित्त प्रकृति वाला, जल क्रीड़ा का प्रेमी, मिष्ठान्नभोजी, भले लोगों से स्नेह करने वाला, उदार, विनम्र, बुद्धिमान, पवित्र, श्माशील, धर्मात्मा,बड़ा ढीठ, कन्या- संततिवान, व्यवसायी, मित्रद्रोही, धनी, व्यसनी, शत्रुओं से पीड़ित, स्वभाव से कुटिल, कभी कभी विपरीत – बुद्धि का परिचय देने वाला, अपने जन्म-स्थान को छोड़कर अन्य स्थान में निवास करने वाला और पतले, परन्तु शक्तिशाली शरीर वाला होता है।
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक के शरीर पर किसी गहरी चोट अथवा घाव का निशान बनता है तथा शारीरिक सौंदर्य एवं स्वास्थ्य में भी कमी रहती है | चेचक की बीमारी होने की भी संभावना रहती है | मानसिक शक्ति दुर्बल होती है तथा कभी कभी मृत्यु- तुल्य कष्ट एवं रोग का शिकार भी बनना पड़ता है | ऐसा व्यक्ति अपनी प्रसिद्धि एवं प्रभाव वृद्धि के लिए गुप्त युक्तियों का आश्रय लेता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दूसरे धन एवं कुटुंब के भवन में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक के धन के कोष में अत्यधिक हानि होती है तथा उसे आर्थिक कमी के कारण बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है | इसी प्रकार उसे अपने कुटुंब से भी दुःख और क्लेश प्राप्त होता है | ऐसा व्यक्ति अत्यधिक परिश्रम एवं गुप्त युक्तियों द्वारा अपने प्रभाव को बनाए रखने का प्रयत्न करता है | बहुत बाद में उसे थोड़ी बहुत सफलता भी मिल जाती है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
तीसरे पराक्रम एवं भाई बहन के स्थान में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक के पराक्रम में वृद्धि होती है | गुप्त युक्तियों, विवेक तथा कठिन परिश्रम के द्वारा उसे सफलता भी मिलती है, परन्तु ऐसा व्यक्ति उददंड प्रकृति एवं उग्र स्वाभाव का होता है | उसमे शालीनता नहीं पाई जाती | उसे भाई बहन का सुख भी कुछ कठिनाइयों के बाद प्राप्त होता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
चौथे केंद्र, माता, भूमि एवं सुख के भवन में अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को माता के सुख में कमी तथा परेशानी बनी रहती है | इसके अतिरिक्त मातृभूमि का वियोग सहन करके बार बार स्थान परिवर्तन करना और दूसरी जगह में जाकर रहना पड़ता है | उसे घरेलू सुखों की प्राप्ति के लिए भी विशेष परिश्रम करना पड़ता है | परन्तु कभी कभी घोर संकटों का सामना भी करना होता है | अंत में उसे सामान्य सुख भी मिलता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
पांचवें त्रिकोण, विद्या, बुद्धि एवं संतान के भवन में अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को संतानपक्ष से कष्ट प्राप्त होता है तथा विद्या बुद्धि के क्षेत्र में भी कठिनाइयां आती हैं | परन्तु ऐसा जातक गुप्त युक्तियों वाला, चतुर- चालाक तथा बातूनी होता है | वह अपनी अयोग्यता को छिपाकर दूसरे लोगों पर प्रभाव डालने में सफल होता है, परन्तु शीलवान तथा संतोषी नहीं होता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
छठे शत्रु एवं रोग स्थान में अपने शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित उच्च केतु के प्रभाव से जातक शत्रु पक्ष पर बड़ी सफलता एवं विजय प्राप्त करता है तथा कठिन से कठिन संकट के समय में भी अपने धैर्य तथा साहस को नहीं छोड़ता | वह गुप्त युक्तियों एवं कठोर परिश्रम के बल पर अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील बना रहता है | उसका शरीर स्वस्थ रहता है, परन्तु उसमे शील तथा दया आदि के गुण नहीं पाए जाते |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने मित्र शनि की मकर राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को स्त्री पक्ष में हानि एवं कष्ट का सामना करना पड़ता है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में भी कठिनाइयों का अनुभव होता है | ऐसे व्यक्ति की मूत्रे द्रीय में विकार होता है | उसकी विषयेच्छा बढ़ी रहती है | वह गुप्त धैर्य धैर्य से काम लेकर कठिनाइयों पर विजय पाता है | ऐसे लोग स्वाभाव के जिद्दी, हठी, भोगी तथा कठिन परिश्रमी होते हैं |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
आठवें मृत्यु एवं पुरातत्व के भवन में अपने मित्र शनि की कुम्भ राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को अपनी आयु के पक्ष में अनेक बार मृत्यु- तुल्य संकटों का सामना करना पड़ता है तथा पुरातत्व की भी हानि होती है | ऐसे व्यक्ति के पेट में विकार रहता है | वह गुप्त चिंताओं तथा परेशानियों से ग्रस्त बना रहता है | धन का संकट उसे सदैव रहता है, परन्तु उस पर विजय पाने के लिए वह निरंतर गुप्त रूप से प्रयत्न करता रहता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
नवें त्रिकोण, भाग्य तथा धर्म के भवन में अपने शत्रु गुरु की मीन राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को अपने भाग्य की उन्नति के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है तथा कभी कभी उसे बहुत बड़े संकटों एवं असफलताओं का शिकार भी बनना होता है | ऐसे व्यक्ति की भाग्योन्नति बहुत धीरे धीरे तथा संघर्षों से मुकाबला करते हुए होती है | संक्षेप में, ऐसी ग्रह स्थिति वाले लोग गुप्त रूप से चिंतित बने रहने वाले, परेशानियों में उलझे रहने वाले, ईश्वर की शक्ति में कम विश्वास करने वाले तथा मंद भाग्य वाले होते हैं |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
दसवें केंद्र, राज्य तथा पिता के भवन में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को पिता के स्थान में हानि तथा कष्ट का सामना करना पड़ता है | उसे राज्य के क्षेत्र में भी कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं तथा व्यवसाय की उन्नति के लिए घोर परिश्रम करना पड़ता है | कभी कभी उसके यश तथा प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का पहुँचता है, परन्तु वह अपनी गुप्त- युक्ति, एवं परिश्रम के द्वारा प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील बना रहता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
ग्यारहवें लाभ भवन में अपने मित्र शुक्र की वृष राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करता है और गुप्त युक्ति, चतुराई एवं परिश्रम के द्वारा उसकी आय में वृद्धि भी होती है, परन्तु कभी कभी उसे आमदनी के क्षेत्र में परेशानियों एवं संकटों का सामना भी करना पड़ता है | ऐसा व्यक्ति स्वार्थी, हिम्मतवर, परिश्रमी तथा पुरुषार्थी होता है |
जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में केतु की स्थिति हो, उसे केतु का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –
बारहवें व्यय स्थान में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित नीच के केतु के प्रभाव से जातक को खर्च के संबंध में बड़ी कठिनाइयां उपस्थित होती हैं तथा बाहरी स्थानों के संबंध से भी कष्ट प्राप्त होता है | ऐसा व्यक्ति अपने खर्च को चलाने के लिए कठिन परिश्रम करता है, परन्तु उससे सम्यक पूर्ति नहीं हो पाती | वह गुप्त युक्तियों के काम लेने वाला, परिश्रमी तथा आंतरिक रूप से दुःख भोगने वाला भी होता है |