कर्क लग्न की कुंडली में सूर्य का फल

कर्क लग्न का संक्षिप्त फलादेश

कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातक का शरीर गौर वर्ण होता है।  वह पित्त प्रकृति वाला, जल क्रीड़ा का प्रेमी, मिष्ठान्नभोजी, भले लोगों से स्नेह करने वाला, उदार, विनम्र, बुद्धिमान, पवित्र, श्माशील, धर्मात्मा,बड़ा ढीठ, कन्या- संततिवान, व्यवसायी, मित्रद्रोही, धनी, व्यसनी, शत्रुओं से पीड़ित, स्वभाव से कुटिल, कभी कभी विपरीत – बुद्धि का परिचय देने वाला, अपने जन्म-स्थान को छोड़कर अन्य स्थान में निवास करने वाला और पतले, परन्तु शक्तिशाली शरीर वाला होता है।

कर्क लग्न में सूर्य का फल

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपने मित्र चन्द्रमा की करक राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक की शारीरिक शक्ति, सौंदर्य एवं तेज में वृद्धि होती है तथा वह धन एवं कुटुंब की शक्ति प्राप्त कर दूसरों की दृष्टि में धनी तथा प्रतिष्ठित समझा जाता है। यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की मकर राशि में सप्तमभाव को देखता है, अयाह जातक को स्त्री तथा व्यवसाय के पक्ष में कुछ असंतोष एवं कठिनाइयों के साथ लाभ प्राप्त होता है।

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन एवं कुटुम के भवन में अपनी सिंह राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक के धन तथा कुटुंब की वृद्धि होती है, जिसके कारण वह प्रभाव तथा प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।  यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं शत्रुदृष्टि से शनि की कुम्भ राशि में अष्टमभाव को देखता है, अतः जातक को पुरातत्व के सम्बन्ध में कुछ कठिनाई एवं दैनिक जीवनचर्या में भी कुछ परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे पराक्रम एवं सहोदर भवन में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक के पराक्रम की वृद्धि होती है तथा भाई बहनो के पक्ष में कुछ त्रुटियों के साथ शक्ति प्राप्त होती है।  पराक्र्म द्वारा ही जातक अपने धन की वृद्धि भी करता है और प्रतिष्ठित होता है।  वहा से सूर्य अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की मीन राशि में नवमभाव को देखता है अतः जातक अपने पराक्रम द्वारा भाग्य की वृद्धि तथा धर्म का पालन करता है।  उसे प्रभाव तथा सम्मान की प्राप्ति भी होती है।

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र, माता भूमि तथा सुख के भवन में अपने शत्रु शुक्र की तुला राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को माता, भूमि व भवन के सुख में कमी प्राप्त होती है।  साथ ही, धन एवं कुटुंब का सुख भी कम मिल पता है।  यहाँ से सूर्य सातवीं उच्च दृष्टि से अपने मित्र मंगल की मेष राशि में दशमभाव को देखता है, अतः जातक को पिता, राज्य एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता धन तथा सम्मान की प्राप्ति होती है।  ऐसा जातक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए धन तथा सुख की विशेष चिंता नहीं करता।

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण तथा विद्या, बुद्धि एवं संतान के भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को संतानपक्ष से कुछ बाधा मिलती है, परन्तु एक संतान अत्यंत प्रभावशाली होती है।  साथ ही विद्या एवं बुद्धि के क्षेत्र में भी अत्यधिक सफलता प्राप्त होती है तथा धन की भी वृद्धि होती है।  यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं शत्रुदृष्टि से शुक्र की वृषभ में एकादशभाव को देखता है अतः जातक उग्र स्वभाव का होता है और वह स्पष्ट बात कहने में अपने हानि- लाभ की चिंता नहीं करता है।

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे शत्रु स्थान में मित्र गुरु की धनु राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक शत्रु पक्ष में प्रभावशाली बना रहता है, परन्तु धनसंचय के क्षेत्र में कमजोरी एवं कौटुम्बिक सुख में वैमनस्य तथा सुख दोनों प्राप्त करता है। झगडे – टंटे से युक्त परिश्रम के कार्यों द्वारा जातक के प्रभाव में वृद्धि होती है।  यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से बुध की मिथुन राशि में द्वादशभाव को देखता है, अतः जातक का खर्च खूब होगा तथा बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से लाभ प्राप्त होगा। वह प्रतिष्ठा के आगे धन- संचय की चिंता नहीं करेगा। 

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने शत्रु शनि की मकर राशि पर स्थित धन स्थान के स्वामी सूर्य के प्रभाव से जातक को स्त्री के पक्ष में कमी तथा कष्ट की पर्पटी होगी। स्त्री से उनका वैमनस्य रहेगा, परन्तु व्यवसाय के क्षेत्र में कुछ परेशानियों के साथ धन का लाभ होता रहेगा। यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से चन्द्रमा की कर्क राशि में प्रथमभाव को देखता है, अतः जातक शरीर के सम्बन्ध में प्रभावशाली बना रहेगा तथा प्रतिष्ठा भी प्राप्त करेगा। 

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें आयु तथा पुरातत्व के भवन में अपने शत्रु शनि की राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को आयु के पक्ष में कभी कभी संकटों का सामना करना पड़ेगा तथा पुरातत्व का लाभ कुछ कमी के साथ प्राप्त होगा। उसका रहन सहन धनवानों जैसा रहेगा।  यहाँ से सूर्य सातवीं दृष्टि से स्वराशि सिंह में द्वितीयभाव को देखता है, अतः जातक को धन एवं कौटुम्बिक सुख में कुछ कमी बनी रहेगी। उसके पेट में भी कोई रोग हो सकता है।

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण, भाग्य तथा धर्म के भवन में अपने मित्र गुरु की मीन राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक की भाग्य्शाक्ति प्रबल रहेगी, जिसके कारण उसे धन तथा कौटुम्बिक सुख की भी प्राप्ति होगी। वह धर्म का पालन भी करेगा तथा यश, मान व प्रतिष्ठा को प्राप्त होगा। यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से बुध की कन्या राशि में तृतीयभाव को देखता है, अतः जातक के पराक्रम में वृद्धि होगी और भाई- बहनो का सुख भी मिलेगा। ऐसा जातक धनी, सुखी, हिम्मतवर तथा स्वार्थ एवं परमार्थ दोनों का साधन करने वाला होता है। 

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र राज्य तथा पिता के भवन में अपने मित्र मंगल की मेष राशि पर स्थित उच्च के सूर्य के प्रभाव से जातक को पिया तथा व्यवसाय के क्षेत्र में सहयोग, प्रतिष्ठा एवं प्रभाव की प्राप्ति होती है। वह धनी एवं सम्मानित माना जाता है उच्च पद प्राप्त करता है।  यहाँ से सूर्य सातवीं नीचदृश्टि से अपने शत्रु की तुला राशि में चतुर्थभाव को देखता है, अतः जातक को माता, भूमि तथा जन्म स्थान के सुख में त्रुटि प्राप्त होगी तथा घरेलू सुख शांति में भी कमी बनी रहेगी। 

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें  लाभ भवन में अपने शत्रु शुक्र की वृषभ राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को धन का विशेष लाभ होगा, परन्तु कौटुम्बिक सुख में कमी बनी रहेगी। यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से मंगल की वृश्चिक राशि में पंचमभाव को देखता है। अतः जातक को संतानपक्ष से लाभ होगा तथा विद्या – बुद्धि के क्षेत्र में भी प्रवीणता तथा सफतला प्राप्त होगी। ऐसा जातक ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत करता है तथा अपनी विद्या – बुद्धि के द्वारा धनोपार्जन में उन्नति करता रहता है।

जिस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में सूर्य की स्थिति हो, उसे सूर्य का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्यय तथा बाहरी सम्बन्धो के भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक रहता है, परन्तु बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से धन का श्रेष्ठ लाभ होता रहता है। ऐसा जातक रईसी ढंग का जीवन बिताता है , परन्तु उसके कौटुम्बिक सुख एवं धन संचय के क्षेत्र में कमी बनी रहती है। यहाँ से सूर्य सातवीं मित्रदृष्टि से गुरु की वृश्चिक राशि में षष्ठभाव को देखता है, अतः जातक को शत्रुपक्ष में सफलता प्राप्त होती है। ऐसा व्यक्ति रईसी खर्च करता हुआ धन के संचय की चिंता नहीं करता। 

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