कन्या लग्न में शुक्र का फल

कन्या लग्न का संक्षिप्त फलादेश

कन्या लग्न में जन्म लेने वाले जातक कफ एवं पित्त प्रकृति वाला, सौन्दर्यवान, विचारशील, संतान से युक्त, स्त्री द्वारा पराजित, डरपोक, मायावी, काम- वासना से दुखी शरीर वाला, कामक्रीड़ा में निपुण, अनेक प्रकार के गुणों तथा कौशलों से युक्त, सदैव प्रसन्न रहने वाला, सुन्दर स्त्री प्राप्त करने वाला, श्रृंगार प्रिय, स्थूल तथा सामान्य शरीर वाला, बड़ी आँखों वाला, प्रियवादी, अल्पभाषी, गणित तथा धर्म में रूचि रखने वाला, गंभीर, अधिक कन्या और संतति वाला, यत्रप्रेमी, चतुर, नाजुक मिजाज, अपने मन की बात को छिपाने वाला, बाल्यावस्था में सुखी, माध्य्मावस्था में सामान्य तथा अंतिम अवस्था में दुःख प्राप्त करने वाला होता है | से वर्ष की आयु के बीच उसकी भाग्योन्नति होती है | इस काल में वह अपने धन ऐश्वर्य की वृद्धि करता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के प्रथमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पहले केंद्र एवं शरीर स्थान में अपने मित्र बुध की कन्या राशि पर स्थित नीच के शुक्र के प्रभाव से जातक को धन एवं कौटुम्बिक सुख के संबंध में कुछ कमी बनी रहती है और वह धनोन्नति के लिए धर्म की चिंता नहीं करता | उसे शारीरिक सुख सामान्य रूप से प्राप्त होता है | यहाँ से शुक्र सातवीं उच्च दृष्टि से सप्तमभाव को देखता है, अतः स्त्री सुन्दर एवं भाग्यवान मिलती है तथा व्यवसाय में भी उन्नति होती है | भोगादि का सुख भी खूब मिलता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वितीयभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दूसरे धन एवं कुटुंब स्थान में अपनी ही तुला राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक के धन तथा कुटुंब में वृद्धि होती है | वह भाग्यशाली होता है तथा धन के द्वारा धर्म का पालन भी करता है और यश पाता है | यहाँ से शुक्र सातवीं शत्रुदृष्टि से मंगल की मेष राशि में अष्टमभाव को देखता है, अतः आयु एवं पुरातत्व का भी लाभ होता है | ऐसा जातक धनी तथा चतुर होता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के तृतीयभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

तीसरे भाई एवं पराक्रम के स्थान में अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित भाग्येश शुक्र के प्रभाव से जातक को भाई बहन का सुख प्राप्त होता है तथा पराक्रम में वृद्धि होती है | पराक्रम के द्वारा वह अपने धन एवं कुटुंब की वृद्धि भी करता है | यहाँ से शुक्र सातवीं दृष्टि से अपनी ही वृषभ राशि में नवमभाव को देखता है, अतः जातक के भगय एवं धर्म की बहुत वृद्धि होती है | ऐसा जातक सुखी, धनी, धार्मिक तथा भाग्यवान होता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के चतुर्थभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

चौथे केंद्र, माता एवं भूमि के भवन में अपने शत्रु गुरु की धनु राशि पर स्थित भाग्येश शुक्र के प्रभाव से जातक को माता, भूमि एवं मकान का श्रेष्ठ लाभ प्राप्त होता है और धन तथा कुटुंब का सुख भी मिलता है | यहाँ से शुक्र अपनी सातवीं मित्रदृष्टि से दशमभाव को बुध की मिथुन राशि में देखता है, अतः पिता की शक्ति मिलती है, राज्य के क्षेत्र में सम्मान तथा व्यवसाय के पक्ष में लाभ होता है | वह धर्म का पालन भी करता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के पंचमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

पांचवें त्रिकोण, विद्या एवं संतान के भवन में अपने मित्र शनि की मकर राशि पर स्थित भाग्येश शुक्र के प्रभाव से जातक को संतान द्वारा श्रेष्ठ लाभ होता है तथा विद्या बुद्धि की वृद्धि के साथ ही धन, भाग्य तथा धर्म की भी उन्नति होती है | यहाँ से शुक्र सातवीं शत्रुदृष्टि से चन्द्रमा की मकर लग्न में एकादशभाव को देखता है, अतः जातक की आमदनी में पर्याप्त वृद्धि होती है | ऐसा व्यक्ति बुद्धि एवं चातुर्य के बल पर निरंतर उन्नति करता चला जाता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के षष्ठभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

छठे शत्रु स्थान में अपने मित्र शनि की कुम्भ राशि पर स्थित भाग्येश शुक्र के प्रभाव से जातक के भाग्य में कुछ कमी आती है तथा धन एवं कुटुंब का सुख भी कम रहता है | उसे धर्म में भी अरुचि रहती है, परन्तु वह अपने चातुर्य द्वारा भाग्य तथा धन की उन्नति करता है और परिश्रम द्वारा शत्रु पक्ष में सफलता पाता है तथा झगडे, मुकदद्मे आदि के द्वारा लाभ उठाता है | यहाँ से शुक्र सातवीं शत्रुदृष्टि से व्ययभाव को देखता है, अतः खर्च अधिक रहने से मानसिक चिंताएं बनी रहती हैं, परन्तु बाहरी स्थानों से अच्छा सुख एवं लाभ मिलता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के सप्तमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

सातवें केंद्र, स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में गुरु की मीन राशि पर स्थित उच्च के शुक्र के प्रभाव से जातक को सुन्दर स्त्री प्राप्त होती है तथा व्यवसाय के क्षेत्र में भी पर्याप्त सफलता मिलती है | वह धर्म का पालन करने वाला, भाग्यवान, भोगी, सुखी तथा धनी होता है | यहाँ से शुक्र सातवीं नीच दृष्टि से अपने मित्र बुध की कन्या राशि में प्रथमभाव को देखता है, अतः जातक के शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी आती है तथा धन की वृद्धि के लिए वह शारीरिक सुख की चिंता नहीं करता |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के अष्टमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

आठवें आयु एवं पुरातत्व के भवन में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक का भाग्य कमजोर रहता है | धन संग्रह में परेशानी होती है | धर्म का यथावत पालन नहीं होता तथा कुटुंब से भी क्लेश मिलता है, जबकि उसे आयु एवं पुरातत्व शक्ति का लाभ प्राप्त होता है | यहाँ से शुक्र सातवीं नीचदृश्टि से अपनी तुला राशि में द्वितीयभाव को देखता है, अतः जातक गुप्त चतुराई एवं कठोर परिश्रम से धनोपार्जन करता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के नवमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

नवें त्रिकोण, भाग्य एवं धर्म के भवन में अपनी ही वृषभ राशि पर स्थित स्वक्षेत्री शुक्र के प्रभाव से जातक बहुत भाग्यशाली होता है तथा धर्म का पालन भी करता है | उसे धन का पर्याप्त सुख मिलता है तथा साथ ही यश व सम्मान में वृद्धि भी होती है | यहाँ से शुक्र सातवीं सामान्य मित्रदृष्टि से मंगल की वृश्चिक राशि में तृतीयभाव को देखता है, अतः उसे भाई बहन की शक्ति प्राप्त होती है तथा पुरुषार्थ में वृद्धि होती है | उसे धन एवं कुटुंब का भी पूर्ण सुख मिलता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के दशमभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

दसवें केंद्र, पिता तथा राज्य के भवन में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक पिता की विशेष शक्ति प्राप्त करता है | उसे राज्य द्वारा उन्नति एवं सम्मान तथा व्यवसाय द्वारा लाभ मिलता है | वह अपने श्रेष्ठ कर्म एवं चातुर्य के बल पर धन एवं कुटुंब की वृद्धि करता है तथा यशस्वी होता है | यहाँ से शुक्र सातवीं दृष्टि से अपने सामान्य शत्रु गुरु की धनु राशि में चतुर्थभाव को देखता है | उसके प्रभाव से जातक को कुछ असंतोष के साथ माता, भूमि एवं मकान आदि का सुख प्राप्त होता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के एकादशभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

ग्यारहवें लाभ भवन में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक की आमदनी अच्छी रहती है | वह बहुत भाग्यवान, धनवान, कुटुंबवान, न्यायी तथा धर्म का पालन करने वाला होता है | यहाँ से शुक्र सातवीं मित्रदृष्टि से शनि की मकर राशि में पंचमभाव को देखता है, अतः जातक को संतान के पक्ष से सुख मिलता है तथा विद्या बुद्धि की उन्नति होती है | ऐसा जातक चतुर, निपुण, योग्य, वाणी में प्रभाव रखने वाला, यशस्वी तथा सुखी होता है |

जिस जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ हो और जन्म कुंडली के द्वादशभाव में शुक्र की स्थिति हो, उसे शुक्र का फलादेश नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए –

बारहवें व्यय स्थान में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक होता है, भाग्योन्नति में बाधा पड़ती है तथा धन का संचय नहीं हो पाता | उसे बाहरी सथानो के संबंध से भी हानि होती है और कुटुंब का सुख भी नहीं मिलता | यहाँ से शुक्र सातवीं मित्रदृष्टि से शनि की कुम्भ राशि में षष्ठभाव को देखता है, अतः शत्रु पक्ष में सफलता मिलती है तथा झगडे- मुकदद्मे आदि से लाभ प्राप्त होता है |

x
Scroll to Top
Verified by MonsterInsights