अष्टमभाव का स्वामी ‘ अष्टमेश ‘
- अष्टमभाव अर्थात आयु, मृत्यु एवं पुरातत्व – स्थान का स्वामी अष्टमेश यदि लग्न अर्थात प्रथमभाव में बैठा हो, तो जातक दीर्घकालीन रोगी, विद्वान्, अपने हित की बात करने वाला, राजा की आज्ञा का पालन करके धन प्राप्त करने वाला तथा अनेक प्रकार के विघ्नो में पड़ने वाला होता है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि द्वितीयभाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो जातक अल्पायु, चोर तथा शत्रुओं से पीड़ित होता है। यदि शुभ ग्रह हो , तो वह शुभ फल देने वाला होता है, परंतु उसकी मृत्यु राजा द्वारा होती है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि तृतीयभाव में बैठा हो , तो जातक मित्रों तथा भाइयों का विरोधी, कटुभाषी, अंगहीन, चंचल स्वभाव का अथवा भाइयों से रहित होता ह।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि चतुर्थभाव में बैठा हो, तो जातक अपने पिता का शत्रु होता है। पिता – पुत्र में झगड़ा होता है तथा पिता रोगी भी बना रहता है, परंतु ऐसा व्यक्ति अपनी माता से धन प्राप्त करता है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि पंचमभाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो जातक पुत्रहीन होता है। यदि शुभ ग्रह हो तो पुत्रवान होता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रायः जीवित नहीं रहता और यदि जीवित रहता है, तो वह महाधूर्त होता है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि षष्ठभाव में बैठा हो, तो जातक राजा का विरोधी होता है, गुरु हो तो अंगहीन, शुक्र हो तो नेत्र – रोगी, चन्द्रमा हो तो रोगी, मंगल हो तो क्रोधी, बुध हो तो कायर, शनि हो तो तृष्णाकुल एवं कष्ट पाने वाला होता है। यदि चन्द्रमा पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो उक्त अशुभ फल नहीं होता है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि सप्तमभाव में हो, तो जातक उदर- रोग से युक्त, दुष्ट स्वभाव वाला तथा कुशील स्त्री का पति होता है। अष्टमेश यदि पाप ग्रह हो, तो जातक स्त्री का द्वेषी होता है और स्त्री के द्वारा ही उसकी मृत्यु होती है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि अपने ही घर अष्टमभाव में हो, तो जातक बलवान, निरोग, कपटी तथा व्यवसायी होता है। वह कपटी तथा कुल में अत्यंत प्रसिद्ध होता है ।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि नवमभाव में हो, तो जातक सहायकों से हीन, जीवघातक, पापी, बंधु- हीन, स्नेह – हीन, कुल के शत्रुओं द्वारा पूज्य तथा कांतिहीन मुख वाला होता है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि दशमभाव में हो तो जातक राज्य – कर्मचारी, नीच कर्म करने वाला तथा आलसी होता है। यदि अष्टमेश पाप ग्रह हो, तो जातक पुत्र – हीन तथा मातृहीन होता है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि एकादशभाव में हो, तो जातक बाल्यावस्था में दुख, परंतु बाद में सुखी और दीर्घायु होता है। यदि अष्टमेश पाप ग्रह हो, तो जातक अल्पायु होता है।
- अष्टमभाव का स्वामी अष्टमेश यदि द्वादशभाव में हो, तो जातक कटुभाषी, चोर, शठ, निर्दय इच्छागामी तथा अंगहीन होता है। मृत्यु के उपरांत उसका शरीर कौआ – गिद्ध आदि पक्षियों का भक्ष्य बनता है।