भगवान चित्रगुप्त आरती | ॐ जय चित्रगुप्त हरे – हिन्दी गीतिकाव्य

भगवान चित्रगुप्त आरती | ॐ जय चित्रगुप्त हरे - हिन्दी गीतिकाव्य

ॐ जय चित्रगुप्त हरे आरती भगवान चित्रगुप्त को समर्पित है। यह भगवान चित्रगुप्त की सबसे प्रसिद्ध आरती में से एक है। यह प्रसिद्ध आरती भगवान चित्रगुप्त से सम्बन्धित अधिकांश अवसरों विशेषतः चित्रा पौर्णमि पर गायी जाती है।
॥ श्री चित्रगुप्त जी की आरती ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे,स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्त जनों के इच्छित,फल को पूर्ण करे॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,सन्तन सुखदायी।
भक्तन के प्रतिपालक,त्रिभुवन यश छायी॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

रूप चतुर्भुज,श्यामल मूरति, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती,दक्षिणा, वाम अङ्ग साजै॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कष्ट निवारण, दुष्ट संहारण,प्रभु अन्तर्यामी।
सृष्टि संहारण, जन दु:ख हारण,प्रकट हुये स्वामी॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कलम, दवात, शङ्ख,पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला,त्रिभुवन मन मोहै॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

सिंहासन का कार्य सम्भाला,ब्रह्मा हर्षाये।
तैंतीस कोटि देवता,चरणन में धाये॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

नृपति सौदास, भीष्म पितामह,याद तुम्हें कीन्हा।
वेगि विलम्ब न लायो,इच्छित फल दीन्हा॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

दारा, सुत, भगिनी,सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,तुम तज मैं भर्ता॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

बन्धु, पिता तुम स्वामी,शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा,आस करूँ जिसकी॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं,इच्छित फल पावैं॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

न्यायाधीश बैकुण्ठ निवासी,पाप पुण्य लिखते।
हम हैं शरण तिहारी,आस न दूजी करते॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥