गायत्री माता आरती - हिन्दी गीतिकाव्य

gayatri mata
देवी गायत्री देवी सरस्वती की अभिव्यक्ति हैं और भगवान ब्रह्मा की पत्नी हैं। देवी गायत्री को वेद माता अर्थात सभी वेदों की जननी माना जाता है। देवी गायत्री हिन्दु त्रिमूर्ति अर्थात भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश के समान आदरणीय व पूजनीय है। वह देवी लक्ष्मी, देवी पार्वती और देवी सरस्वती का अवतार हैं।
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॥ श्री गायत्रीजी की आरती ॥

जय गायत्री माता आरती गायत्री माता की सबसे प्रसिद्ध आरती में से एक है। यह प्रसिद्ध आरती माता माता से सम्बन्धित अधिकांश अवसरों पर गायी जाती है।

जयति जय गायत्री माता,जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ,जो है सुखदाता॥

जयति जय गायत्री माता…।

आदि शक्ति तुम अलख निरञ्जनजग पालन कर्त्री।
दुःख, शोक, भय, क्लेश,कलह दारिद्रय दैन्य हर्त्री॥

जयति जय गायत्री माता…।

ब्रहृ रुपिणी, प्रणत पालिनी,जगतधातृ अम्बे।
भवभयहारी, जनहितकारी,सुखदा जगदम्बे॥

जयति जय गायत्री माता…।

भयहारिणि भवतारिणि अनघे,अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित,अमले, अविनाशी॥

जयति जय गायत्री माता…।

कामधेनु सत् चित् आनन्दा,जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती शक्ति,तुम सावित्री सीता॥

जयति जय गायत्री माता…।

ऋग्, यजु, साम, अथर्व,प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्रार,सुषुम्ना, शोभा गुण गरिमे॥

जयति जय गायत्री माता…।

स्वाहा, स्वधा, शची,ब्रहाणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरुपा, वाणी, विघा,कमला, कल्याणी॥

जयति जय गायत्री माता…।

जननी हम है, दीन, हीन,दुःख, दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत,तऊ बालक है तेरे॥

जयति जय गायत्री माता…।

स्नेहसनी करुणामयि माता,चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे,दया दृष्टि कीजै॥

जयति जय गायत्री माता…।

काम, क्रोध, मद, लोभ,दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि, निष्पाप हृदय,मन को पवित्र करिये॥

जयति जय गायत्री माता…।

तुम समर्थ सब भाँति तारिणी,तुष्टि, पुष्टि त्राता।
सत् मार्ग पर हमें चलाओ,जो है सुखदाता॥

जयति जय गायत्री माता…।


॥ श्री गायत्रीजी की आरती ॥

आरती श्री गायत्रीजी की गायत्री माता की एक और लोकप्रिय आरती है। यह प्रसिद्ध आरती माता माता से सम्बन्धित अधिकांश अवसरों पर गायी जाती है।

आरती श्री गायत्रीजी की।
ज्ञानदीप और श्रद्धा की बाती।
सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी की॥

आरती श्री गायत्रीजी की।

मानस की शुचि थाल के ऊपर।
देवी की ज्योत जगै, जहं नीकी॥

आरती श्री गायत्रीजी की।

शुद्ध मनोरथ ते जहां घण्टा।
बाजैं करै आसुह ही की॥

आरती श्री गायत्रीजी की।

जाके समक्ष हमें तिहुं लोक कै।
गद्दी मिलै सबहुं लगै फीकी॥

आरती श्री गायत्रीजी की।

संकट आवैं न पास कबौ तिन्हें।
सम्पदा और सुख की बनै लीकी॥

आरती श्री गायत्रीजी की।

आरती प्रेम सौ नेम सो करि।
ध्यावहिं मूरति ब्रह्म लली की॥

आरती श्री गायत्रीजी की।
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