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अगस्त्य सरस्वती स्तोत्रम् 

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अगस्त्य मुनि प्रोक्तं श्री सरस्वती स्तोत्रम्

अगस्त्य सरस्वती स्तोत्रम सरस्वती माता के स्तोत्रमों में से एक है। इस स्तोत्रम का पाठ देवी सरस्वती से सम्बन्धित विभिन्न अवसरों पर किया जाता है, जिन्हें ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा के रूप में पूजा जाता है।  इस स्तोत्रम् की रचना महान ऋषि अगस्त्य ने की थी, जिन्हें सबसे प्रतिष्ठित संतों में से एक माना जाता है। अगस्त्य सरस्वती स्तोत्रम्  का जाप भक्तों द्वारा देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ज्ञान, बुद्धि  और उनके शैक्षणिक और व्यावसायिक कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र को अत्यधिक शक्तिशाली माना जाता है और  बुद्धि प्राप्त करने की दिशा में किसी भी बाधा को दूर करने के लिए   किया जाता है। सरस्वती पूजा और देवी को समर्पित अन्य शुभ अवसरों के दौरान भी स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है।

॥ श्री सरस्वती स्तोत्रम् ॥

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिनिभैरक्षमालान्दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण।
भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना॥2॥

सुरासुरसेवितपादपङ्कजा
करे विराजत्कमनीयपुस्तका।
विरिञ्चिपत्नी कमलासनस्थिता
सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा॥3॥

सरस्वती सरसिजकेसरप्रभा
तपस्विनी सितकमलासनप्रिया।
घनस्तनी कमलविलोललोचना
मनस्विनी भवतु वरप्रसादिनी॥4॥

सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥5॥

सरस्वति नमस्तुभ्यं सर्वदेवि नमो नमः।
शान्तरूपे शशिधरे सर्वयोगे नमो नमः॥6॥

नित्यानन्दे निराधारे निष्कलायै नमो नमः।
विद्याधरे विशालाक्षि शुद्धज्ञाने नमो नमः॥7॥

शुद्धस्फटिकरूपायै सूक्ष्मरूपे नमो नमः।
शब्दब्रह्मि चतुर्हस्ते सर्वसिद्ध्यै नमो नमः॥8॥

मुक्तालङ्कृतसर्वाङ्ग्यै मूलाधारे नमो नमः।
मूलमन्त्रस्वरूपायै मूलशक्त्यै नमो नमः॥9॥

मनो मणिमहायोगे वागीश्वरि नमो नमः।
वाग्भ्यै वरदहस्तायै वरदायै नमो नमः॥10॥

वेदायै वेदरूपायै वेदान्तायै नमो नमः।
गुणदोषविवर्जिन्यै गुणदीप्त्यै नमो नमः॥11॥

सर्वज्ञाने सदानन्दे सर्वरूपे नमो नमः।
सम्पन्नायै कुमार्यै च सर्वज्ञे नमो नमः॥12॥

योगानार्य उमादेव्यै योगानन्दे नमो नमः।
दिव्यज्ञान त्रिनेत्रायै दिव्यमूर्त्यै नमो नमः॥13॥

अर्धचन्द्रजटाधारि चन्द्रबिम्बे नमो नमः।
चन्द्रादित्यजटाधारि चन्द्रबिम्बे नमो नमः॥14॥

अणुरूपे महारूपे विश्वरूपे नमो नमः।
अणिमाद्यष्टसिद्ध्यायै आनन्दायै नमो नमः॥15॥

ज्ञानविज्ञानरूपायै ज्ञानमूर्ते नमो नमः।
नानाशास्त्रस्वरूपायै नानारूपे नमो नमः॥16॥

पद्मदा पद्मवंशा च पद्मरूपे नमो नमः।
परमेष्ठ्यै परामूर्त्यै नमस्ते पापनाशिनि॥17॥

महादेव्यै महाकाल्यै महालक्ष्म्यै नमो नमः।
ब्रह्मविष्णुशिवायै च ब्रह्मनार्यै नमो नमः॥18॥

कमलाकरपुष्पा च कामरूपे नमो नमः।
कपालि कर्मदीप्तायै कर्मदायै नमो नमः॥19॥

सायं प्रातः पठेन्नित्यं षण्मासात् सिद्धिरुच्यते।
चोरव्याघ्रभयं नास्ति पठतां शृण्वतामपि॥20॥

इत्थं सरस्वतीस्तोत्रम् अगस्त्यमुनिवाचकम्।
सर्वसिद्धिकरं नॄणां सर्वपापप्रणाशणम्॥21॥

॥ इति श्री अगस्त्यमुनिप्रोक्तं सरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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